छात्र युवा संघर्ष वाहिनी , नौजवानों की जिस जमात से आपात-काल के खत्म होते होते जुड़ा उसने 'सांस्कृतिक क्रान्ति' का महत्व समझा । भवानी बाबू ने इस जमात को कहा ' सुरा-बेसुरा ' जैसा भी हो गाओ। सो , सुरे-बेसुरे गीतों का यह चिट्ठा ।
Sunday, December 27, 2009
भारतीय रॉक सितारा अशीम चक्रवर्ती नहीं रहे
भारतीय रॉक प्रेमियों के लिए २५ दिसम्बर , २००९ का दिन दु:खद रहा । ’इण्डियन ओशन’ नामक बैण्ड के प्रमुख और पुराने सदस्य अशीम चक्रवर्ती की ५२ साल की अवस्था में हृदय आघात से मृत्यु हो गयी । अशीम इस फ़्यूजन रॉक बैण्ड के संस्थापक सदस्यों में थे । उनकी नीचे के सप्तक और ऊपर के सप्तक के बीच का विस्तार असीम था । उन्होंने विज्ञापन का काम छोड़कर यह बैण्ड बनाया ।
मैं जिन गीतों से प्रभावित हुआ हूँ , उन्हें यहाँ पेश कर रहा हूँ । दोनों गीतों के बोलों को सुन कर काफ़ी सूफ़ी / निर्गुण सा लगता है । अपनी राय दीजिएगा । अनुराग कश्यप ने अपनी फिल्म ब्लैक फ़्राईडे में उनका गीत लिया था (बन्दे-यह गीत पेश है) । दूसरा गीत गुलाल से है,अशीम के साथ राहुल राम का स्वर है ।
Saturday, December 19, 2009
पूर्व बांग्ला की लोक धुन भटियाली , सितार, फिल्म संगीत पर
हिन्दी फिल्मों में भी भटियाली-धुनों पर गीत आये जो सदाबहार बन गये ।
उस्ताद विलायत खान : सितार : भटियाली
नन्हा-सा पंछी रे तू बहुत बड़ा पिंजडा तेरा आमाय डुबाइली रे , आमाय भाशाईली रे - रुना लैला
गंगा आये कहाँ से : काबुलीवाला : हेमन्त कुमार : सलिल चौधरी : गुलजार ( प्रेम धवन ने इसी फिल्म का 'ऐ मेरे प्यारे वतन' लिखा है)
Friday, November 27, 2009
मालूम क्या किसीको, दर्दे – निहाँ हमारा / अल्लामा इक़बाल
हम बुलबुलें हैं उसकी , वह बोस्ताँ हमारा ॥ध्रु.॥
गुरबतमे हों अगर हम , रहता है दिल वतनमें ।
समझो वहीं हमें भी , दिल हो जहाँ हमारा ॥१॥
परबत वह सबसे ऊँचा , हमसाया आसमाँका ।
वह संतरी हमारा , वह पासबाँ हमारा ॥२॥
गोदीमें खेलती हैं , जिसकी हजारों नदियाँ ।
गुलशन है जिनके दम से , रश्के-जिनाँ हमारा ॥३॥
ए आबे-रूदे-गंगा , वह दिन है याद तुझको ।
उतरा तेरे किनारे , जब कारवाँ हमारा ॥४॥
मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना ।
हिन्दी हैं हम , वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा ॥५॥
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा , सब मिट गये जहाँ से ।
अब तक मग़र है बाकी , नामोनिशाँ हमारा ॥६॥
कुछ बात है कि हस्ती , मिटती नहीं हमारी ।
सदियों रहा है दुश्मन , दौरे – जमाँ हमारा ।।७॥
इक़बाल कोई महरम , अपना नहीं जहाँमें ।
मालूम क्या किसीको , दर्दे – निहाँ हमारा ॥८॥
- अल्लामा इक़बाल
बोस्ताँ = बाग , गुरबत = विदेश , परदेश
हमसाया = पड़ौसी , पासबाँ = रक्षा करने वाला ,
रश्के-जिनाँ = स्वर्ग को भी डाह हो जिनसे ,
महरम = भेद जानने वाला , दर्दे-निहाँ = छिपी हुई वेदना
सुषमा श्रेष्ठ द्वारा गाया ।
Saturday, November 21, 2009
जीवन से लम्बे हैं बन्धु , ये जीवन के रस्ते /मन्ना डे/गुलजार/आशीर्वाद/वसन्त देसाई
स्वर - मन्ना डे , संगीत - वसन्त देसाई , बोल - गुलज़ार , फिल्म आशीर्वाद
Wednesday, November 4, 2009
दिल नाउम्मीद तो नहीं , नाकाम ही तो है
Tuesday, October 20, 2009
बदाऊँ के शालीन के मिलने की खुशी में राशिद खान
इस ब्लॉग पर राशिद खान के गायन की पोस्ट देख कर तपाक से शालीन बोले,’वे भी बदाऊँ के हैं ।’ इस नयी दोस्ती के नाम पर आज की पोस्ट उस्ताद राशिद ख़ान द्वारा राग भटियार में गाया तराना है। कहते हैं , भटियार शब्द का मूल भतृहरि से है। इसके गायन का वक्त पौ फटते ही है ।
उस्ताद राशिद ख़ान के गायन का रस लीजिए :
Friday, October 16, 2009
शुभ दीपावली : तुम अपना रंज-ओ-ग़म , अपनी परेशानी मुझे दे दो
तुम्हें ग़म की कसम , इस दिल की वीरानी मुझे दे दो ।
ये माना मैं किसी का़बिल नहीं हूँ इन निग़ाहों में ।
बुरा क्या है अग़र , ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो ।
मैं देखूं तो सही दुनिया तुम्हें कैसे सताती है ।
कोई इनके लिए अपनी निगेबानी मुझे दे दो ।
वो दिल जो मैंने माँगा था मगर गैरों ने पाया था ।
बड़ी इनायत है अग़र उसकी पशेमानी मुझे दे दो ।
- फिल्म - शग़ुन (१९६४) , गीतकार - साहिर लुधियानवी ,गायिका - जगजीत कौर, संगीत- खैय्याम
Friday, September 11, 2009
मुकेश के दो प्रेरक गाने
ऐ दिले आवारा चल ,फिर कहीं दोबारा चल ।
यार ने दीदार का वादा किया है । , डॉ. विद्या नामक फिल्म से ।
https://youtu.be/2Zb0XlERT7M
’गर्दिश में हों तारे , ना घबड़ाना प्यारे’ , फिल्म रेशमी रुमाल
दोनों ही गीत विविध भारती पर सुबह - सुबह सुने । ऐसे गीतों को नियमित रूप से सुनने के लिए जरूरी है कि ट्रांजिस्टर नामक पुरानी टेक्नॉलॉजी का यन्त्र ( नए चले एफ़ एम बैण्ड सहित ) रखा जाए ।
एक सवाल विविध भारती के मित्रों से जरूर है । हमारे शहर बनारस में एफ़ एम पर विविध भारती है लेकिन उसमें निजी चैनलों की तरह स्टीरियो-असर क्यों नहीं सुनाई पड़ता ? अपनी तमाम मजबूतियों के अलावा इस पर ध्यान देना होगा ।
Sunday, August 23, 2009
गाइये गणपति जगवन्दन / तुलसीदास /आश्विनी भिडे देशपाण्डे
शंकर सुवन , भवानीनन्दन ।
सिद्धि सदन,गजवदन ,विनायक ,
कृपा-सिन्धु , सुन्दर सब लायक ।
मोदक प्रिय,मुद मंगलअदाता ,
विद्या-वारिधी ,बुद्धि विधाता ।
मांगत तुलसीदास कर जोरे,
बसे राम-सिय मानस मोरे ॥
शास्त्रीय गायन की वरिष्ट कलाकार अश्विनी भिडे देशपाण्डे के स्वर में , राग विहाग में यह प्रस्तुति ।
[कृपया पूरी बफ़रिंग के बाद सुनें - बिना बाधा। सबसे पहले बड़े तिकोने पर खटका मारें । बफ़रिंग के लिए ,कर्सर को प्लेयर के निचले हिस्से में स्थित नियंत्रण पर ले जाकर , शुरु होते ही रोक दीजिए तथा खड़ी डण्डियां भर जाने तक प्रतीक्षा करें(या अन्य काम करें),तब सुनें । ]
Saturday, August 22, 2009
मैं दादा बन गया !
परसों भीमसेन जोशी का गीत लगाते वक्त बमबम उर्फ़ सुकरात और पूजा की याद तो खूब आ रही थी लेकिन मुझे अन्दाज था कि नवागन्तुक के आने की अपेक्षित तिथि में विलम्ब है । बालक भीमसेन जोशी के गीत और आने वाली पीढ़ी की तरह फ़ास्ट निकला, आज पैदा हो गया ।
४ अगस्त , १९७५ के दिन बनारस के सरकारी जिला महिला अस्पताल में बमबम की पैदाईश की याद घूम गयी । आपात काल लगे मात्र १०-११ दिन हुए थे । बमबम के पिता , मेरे बड़े भाई नचिकेता भूमिगत थे । मेरी माँ को चिन्ता थी कि कि भाई ऐन वक्त पर पहुँचेगा भी या नहीं । लगता था कि बमबम ने मेरी भाभी रत्ना को खूब झेलाया होगा । मेरी दीदी उसी अस्पताल में चिकित्साधिकारी थी ।
बमबम बनारस में चार साल की उमर तक था । लंगोट बदलने आदि की मुझे पहली तालीम देते हुए।
बमबम और ’बेटा रामदास’ मेरे दिए हुए नाम हैं । आज फोन पर उससे पूछा, ’टनटन ?’ तो उसे लगा कि ककवा फिर नाम रखने लगा ।
अपने गुरुजी श्री छन्नूलाल मिश्र का गाया यह सोहर प्रस्तुत करने का आज उपयुक्त दिन । हमें जो सोहर उन्होंने सिखाया था , उससे बेहतर है ,यह:
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Thursday, August 20, 2009
ठुमक ठुमक पग ,कुमक कुंज मद,चपल चरण हरि आए/भीमसेन जोशी/जयदेव/अनिल चटर्जी/अनकही
मानोषी ने तब बताया था कि "फिल्म का हर गाना उम्दा है " । ढ़ूँढ़ लिए थे गीत लेकिन सुनाने का जुगाड़ अब हो पाया।
कोई गीतकार का नाम बता दे !
[ प्लेयर पर कर्सर को निचले भाग में ले जायेंगे तो नियन्त्रण के औजार दिखाई देंगे। फिर से सुनने के लिए गीत समाप्त होने पर कर्सर निचले भाग में ले जाना होता है और खटका मारना होता है । फिर से सुनने , एम्बेड कोड और डाउनलोड के प्रावधान परदे पर प्रकट हो जाते हैं । डिवशेयर की खूबी है कि दूसरी बार (बफ़रिंग के पश्चात) सुनने पर बिलकुल रुकावट नहीं होती । ]
Thursday, August 6, 2009
माउथ ऑर्गन के उस्ताद मदन कुमार अहमदाबाद में
करीब आठ साल की उम्र से वह माउथ ऑर्गन का दीवाना हुआ था - यानी मेरी पैदाइश के आसपास कभी । मेरी माँ की नानी स्नेहलता सेन शान्तिनिकेतन की स्थापना के समय से वहाँ के एक छात्रावास की अधीक्षक थीं और मेरी नानी और उनके दो भाई शान्तिनिकेतन के शुरुआती विद्यार्थियों में थे । नानी वीणा बजातीं और मेरी माँ के छोटे मामू जान (हमारे दादुल) बाँसुरी । माँ के ममेरे भाइयों में एक माउथ ऑर्गन बजाते थे और उन्हें देख कर ही भाई साहब पर इसकी धुन सवार हो गयी थी ।
पिछले रविवार को अहमदाबाद के हार्मोनिका क्लब के सदस्यों का उत्साह देखने लायक रहा होगा । भारत में माउथ ऑर्गन बजाने वालों में श्रेष्ठतम मदन कुमार अहमदाबाद आये हुए थे और क्लब वालों के बीच आना स्वीकार किया था । मदन कुमार ने इनके बीच अपनी राम कहानी सुनाई ,धुनें सुनाईं और कुछ सबक भी दिए । उन्हें शैशव से ही पिता का स्नेह नहीं मिला और अपने संघर्ष के बूते वे देश के सर्वश्रेष्ठ माउथ ऑर्गन वादक बने । आज कल पुणे में वे बच्चों को बजाना सिखाते हैं ।
उनकी अपनी जुबानी उनकी राम कहानी हार्मोनिका क्लब ऑफ़ गुजरात के ब्लॉग पर आती रहेगी । यहाँ क्लब के विशेष सौजन्य से उनका बजाया ,उनके सर्वाधिक पसन्दीदा गीत - ’याद किया दिल ने कहाँ हो तुम ’ की धुन ।
सुबह सिलोन पर मदन कुमार को सुनने के अलावा शाम को विविध भारती पर ’साज और आवाज’ की भी आपको याद होगी । इसलिए उन दिनों की याद में मूल गीत भी सुनिए :
[ प्लेयर पर कर्सर को निचले भाग में ले जायेंगे तो नियन्त्रण के औजार दिखाई देंगे। फिर से सुनने के लिए गीत समाप्त होने पर कर्सर निचले भाग में ले जाना होता है और खटका मारना होता है । फिर से सुनने , एम्बेड कोड और डाउनलोड के प्रावधान परदे पर प्रकट हो जाते हैं । डिवशेयर की खूबी है कि दूसरी बार सुनने पर बिलकुल रुकावट नहीं होती । ]
Wednesday, August 5, 2009
अज़दक के लिए : मुझे प्यार तुमसे नहीं है / घरौंदा/ रूना लैला/जयदेव/गुलजार
तुम्हे हो न हो मुझको तो इतना यक़ीं है
मुझे प्यार तुमसे नहीं है , नहीं है ।
मुझे प्यार तुमसे नहीं है ,नहीं है
मगर मैंने ये राज़ अब तक न जाना
के क्यों प्यारी लगती हैं बातें तुम्हारी,
मैं क्यों तुमसे मिलने का ढूँढू बहाना
कभी मैंने चाहा तुम्हें छू के देखूँ,
कभी मैंने चाहा तुम्हें पास लाना
मगर फ़िर भी इस बात का तो यकीं है...
फ़िर भी जो तुम दूर रहते हो मुझसे,
तो रहते हैं दिल पे उदासी के साये ।
कोई ख़्वाब ऊँचे मकानों से झाँके ,
कोई ख़्वाब बैठा रहे सर झुकाये
कभी दिल की राहों में फैले अँधेरा
कभी दूर तक रोशनी मुसकुराये ।
मग़र फ़िर भी इस बात का तो यक़ीं है......
- गुलज़ार नहीं नक्श लायलपुरी (विनयजी के सुधारने पर)
[ प्लेयर पर कर्सर को निचले भाग में ले जायेंगे तो नियन्त्रण के औजार दिखाई देंगे। फिर से सुनने के लिए गीत समाप्त होने पर कर्सर निचले भाग में ले जाना होता है और खटका मारना होता है । फिर से सुनने , एम्बेड कोड और डाउनलोड के प्रावधान परदे पर प्रकट हो जाते हैं । डिवशेयर की खूबी है कि दूसरी बार सुनने पर बिलकुल रुकावट नहीं होती । ]
Monday, August 3, 2009
Wednesday, July 29, 2009
लालित्यपूर्ण लीला नायडू की स्मृति में अनुराधा
लालित्यपूर्ण फिल्म नायिका लीला नायडू का कल लम्बी बीमारी के बाद देहान्त हो गया । वे ६९ वर्ष की थी । उनके पिता रामैय्या नायडू परमाणु भौतिकविद थे , माँ आयरलैण्ड/फ्रांसीसी मूल की थीं । वे १९५४ की फेमिना मिस इंडिया थीं । महारानी गायत्री देवी के साथ लीला नायडू को भी वोग पत्रिका ने दुनिया की दस सुन्दर महिलाओं की अपनी सूची में रखा था ।
उन्होंने १९६० में बनी हृषिकेश मुखर्जी की फिल्म अनुराधा से अभिनय की शुरुआत की । इस फिल्म का संगीत मशहूर सितारवादक पण्डित रवि शंकर का था । इस फिल्म में उनके नायक बलराज साहनी थे । अनुराधा चली नहीं लेकिन लीला नायडू के अभिनय की अच्छी चर्चा हुई और फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। लीला नायडू की स्मृति में लता मंगेशकर के गाये अनुराधा के चार अमर गीत आज प्रस्तुत किए जाए रहे हैं ।
१. हाय रे वो दिन क्यूँ न आए
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२. कैसे दिन बीते , कैसे बीतीं रतियाँ
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३. साँवरे - साँवरे
४. जाने कैसे सपनों में खो गईं
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Friday, July 24, 2009
मस्ती में झूले और सभी गम भूलें : सचिन बर्मन/लता/साहिर/हाऊस नं ४४
१९५५ में बनी हाउस नम्बर ४४ । साहिर लुधायनवी की सुन्दर - सहज शब्द रचना । कल्पना कार्तिक पर फिल्माया गया ।
फैली हुई हैं सपनों की बाहें , आ जा चल दें कहीं दूर
वहीं मेरी मंजिल , वहीं तेरी राहें , आ जा चल दें कहीं दूर ।
ऊँची घटा के साये तले छिप जाँए,
धुँधली फ़िज़ा में ,कुछ खोयें ,कुछ पायें ।
साँसों की लय पर , कोई ऐसी धुन गायें,
दे दे जो दिल को दिल की पनाहें ॥ आ जा चल दें...
झूला ढलकता ,घिर घिर हम झूमें,
अम्बर तो क्या है , तारों के भी लब चूमें ।
मस्ती में झूलें और सभी गम भूलें ,
पीछे न देखें मुड़ के निगाहें ॥ आ जा चल दें
साहिर लुधियानवी
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Monday, July 20, 2009
उस्ताद अमीर खान / पूरिया धनश्री / बैजू बावरा / तोरी जय जय करतार
तोरी जय जय करतार (२)
मोरी भर दे आज झोलिया
तू रहीम दाता तू पाक किरतिकार
तोरी जय जय करतार
तानसेन को तू रब , ज्ञान ध्यान दीजो सब
तानसेन को तू रब ( आलाप )
राग रंग सागर है कर दे नैय्या पार
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Saturday, July 18, 2009
आज सिर्फ़ मन्दीजन्य मरम्मत
अत: उन पोस्टों में पड़ी लाईफ़लॉगर की लाइफविहीन एम्बेडिंग कोड को हटा कर वैकल्पिक व्यवस्था कर दी गई है । इस मरम्मत को तरजीह दें,गुजारिश है ।
दरियाव की लहर : कबीर का गीत
हरीन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय का एक हिन्दी गीत
शाम सहमी न हो , रात हो न डरी , भोर की आंख फिर डबडबायी न हो
बाकी मरम्मत फिर कभी ।
Friday, July 17, 2009
मन मोर हुआ मतवाला / सचिनदेव बर्मन / नरेन्द्र शर्मा / सुरैय्या /
अफ़सर फिल्म (१९५०) के इस सुरीले गीत में नरेन्द्र शर्मा, सचिनदेव बर्मन और सुरैय्या सबका अपूर्व योगदान है :
सैंकड़ों पुराने गीतों के दो डीवीडी सागर नाहर ने मुझे भेट दिए । उनमें से एक में है , यह ।
Thursday, July 16, 2009
तोसे नैना लागे रे, पिया साँवरे
कल ही एक मित्र के ईस्नाइप के फोल्डर में सुना । मित्र समीरलाल को समर्पित ।
मोरा सैंया मो से बोले ना !
Monday, July 13, 2009
बादल देख डरी / मीरा / वाणी जयराम / पण्डित रविशंकर
श्याम मैं बादल देख डरी
काली-पीली घटा ऊमड़ी बरस्यो एक घरी
जित जाऊं तित पाणी पाणी हुई सब भोम हरी
जाके पिया परदेस बसत है भीजे बाहर खरी
मीरा के प्रभु गिरधर नागर कीजो प्रीत खरी
श्याम मैं बादल देख डरी
मीराबाई के इस पद को ज्युथिका राय से लगायत कई गायिकाओं और गायकों ने भी गाया है । मशहूर ब्लॉगर ने ज्युथिका राय का गाया ’ गीतों की महफ़िल ’ में पहले पेश किया था। गुलजार की बनाई ’ मीरा’ फिल्म में पण्डित रविशंकर का संगीत है और इस पद को वाणी जयराम ने गाया है । वाणी जयराम का गाया मेरी पत्नी डॉ. स्वाति गुनगुनाती हैं और ’जाके पिया परदेस बसत है भीजे बाहर खरी ’ की तर्ज पर हमें भीजता छोड़ लम्बे अध्ययन अवकाश पर जा रही हैं ।
Saturday, July 11, 2009
जा रे बदरा बैरी जा / फिल्म - बहाना /लता/ मदन मोहन
Thursday, July 2, 2009
तीन सदाबहार कव्वालियां
Wednesday, July 1, 2009
रफ़ी और अनेक
Sunday, June 28, 2009
येसूदास के आठ मधुर गीत
येसुदास के हिन्दी फिल्मी गीतों का दौर । बहुत आनन्ददायक दौर । क्या किसी क्षेत्रवादी साजिश के कारण उन्होंने हिन्दी फिल्मों गीतों में गाना बन्द कर दिया था ? अज़दक भाई शायद बता दें । या युनुस बतायें ।
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Saturday, April 25, 2009
ये पाँच सालों का देने हिसाब आये हैं
Thursday, April 23, 2009
Tuesday, April 21, 2009
' विरह विथा का को कहूं सजनी '
Saturday, April 11, 2009
Monday, April 6, 2009
राग देश में तराना : उस्ताद राशिद खान
उसी प्रक्रिया में मुझे उस्ताद राशिद खान साहब का ,राग देश में यह तराना मिल गया । उम्मीद है आप को भी पसन्द आयेगा ।
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Tuesday, March 31, 2009
Tuesday, March 24, 2009
ओ रसिया मोरे पिया , छीन ले गयो रे जिया
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Sunday, March 22, 2009
काजोल की माँ का मजेदार गीत
Saturday, March 21, 2009
सच हुए सपने तेरे / काला बाजार / आशा भोंसले
[चिकी चिकी चिक चई ]-२
चिकी चिकी चिक चा
बेकल मन का धीरज लेकर मेरे साजन आये
जैसे कोई सुबह का भूला साँझ को घर आ जाए
प्रीत ने रंग बिखेरे , झूम ले ओ मन मेरे
[चिकी चिकी चिक चई ]-२
चिकी चिकी चिक चा
मन की पायल छम छम बोले,हर एक साँस तराना
धीरे धीरे सीख लिया अंखियोंने मुसकाना
हो गए दूर अँधेरे , झूम ले ओ मन मेरे
[चिकी चिकी चिक चई ]-२
चिकी चिकी चिक चा
जिस उलझन ने दिल उलझाके सारी रात जगाया
बानी है वो आज प्रीत की माला मन का मीत मिलाया
जगमग साँझ सवेरे , झूम ले ओ मन मेरे
[चिकी चिकी चिक चई ]-२
चिकी चिकी चिक चा
Thursday, March 12, 2009
जर्मन रेडियो डॉएचे वेले पर गांधी - चर्चा
उज्ज्वल भट्टाचार्य मेरे शहर बनारस की वामपंथी युवा राजनीति से जुड़े रहे । १९७९ से जर्मनी में जर्मन रेडियो डॉएचे वेले के हिन्दी प्रभाग से जुड़े हैं । रेडियो पत्रकारिता के अलावा उज्ज्वल कविता और कहानी लिखते हैं । उन्होंने गेथे , हाइन , ब्रेख़्त , एनज़ेन्सबर्गर , ग्रास तथा हाइनर की रचनाओं के हिन्दी अनुवाद किए हैं तथा फ़ैज़ और रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कुछ रचनाओं के जर्मन में अनुवाद भी किए हैं । उज्ज्वल की जर्मन से अनुदित कवितायें - वतन की तलाश ( एरिक फ्रायड की कवितायें ) , भविष्य संगीत ( हान्स-मैग्नस एन्ज़ेन्सबर्गर की कविताएं) , एकोत्तरशती (ब्रेख़्त की १०१ कवितायें ), पता है तुम्हे उस देश का ( गेथे की कवितायें) प्रकाशित हो चुकी हैं ।
रेडियो जर्मनी डॉएचे वेले की साप्ताहिक सांस्कृतिक हिन्दी रेडियो पत्रिका ‘रंग तरंग’ में उज्जवल ने गत सोमवार को गांधीजी के सामानों की शराब तथा एयरलाइन्स व्यवसायी माल्या द्वारा बोली लगा कर खरीदने की चर्चा की । चर्चा का एक हिस्सा मुझसे बातचीत है । उक्त चर्चा की प्रस्तुति उनके जर्मन रेडियो डॉएचे वेले के प्रति आभार प्रकट कर यहाँ प्रकाशित कर रहा हूँ । मैं प्रसारण के वक्त इसे नहीं सुन पाया था । लंका स्थित ‘गार्जियन’ रामजी टंडन ने प्रसारण सुना था और प्रसन्न हो कर मुझे खबर दी थी। टंडनजी पर कभी अलग से चर्चा की जाएगी ।
सुनिए जर्मन रेडियो डॉएचे वेले के कार्यक्रम ‘रंग तरंग’ का यह अंक और अपनी राय भी प्रकट कीजिए -
Tuesday, March 10, 2009
Monday, March 9, 2009
Sunday, March 8, 2009
Saturday, March 7, 2009
मुझे चुभती है ,ये तो निगोड़ी भारी अंगिया
Wednesday, February 18, 2009
'धनी - धनी धन्य हो बढ़इय्या'
अतहि सुन्दर पालना गढ़ि लाओ रे बढ़इया, गढ़ि लाओ रे बढ़इया
शीत चन्दन कटाऊँ धरी,खलादि रंग लगाऊँ विविध ,
चौकी बनाओ रंग रेशम ,लगाओ हीरा, मोती ,लाल बढ़इया ।
आनी धर्यो नन्दलाल सुन्दर,व्रज-वधु देखे बार-बार
शोभा नहि गाए जाए ,धनी ,धनी ,धन्य है बढ़इया ।।
करीब ४० साल पहले विदूषी गिरिजा देवी की योज्ञ शिष्या डॉ. मन्जू सुन्दरम ने स्कूल में यह सुन्दर गीत सिखाया था । उनके मधुर स्वर में यह गीत प्रस्तुत कर पाता तो क्या बात होती ! मंजू गुरुजी ने कहा तो है कि उनके स्वर में सी.डी. बनेगी। फिलहाल ब्लॉग के पते के अनुरूप सुराबेसुरा झेल लीजिए !
गीत में सिर्फ पालने की स्तुति नहीं है अपितु पालने को गढ़ने वाले बढ़ई की स्तुति भी है । मैंने १९७७ में करीब चार महीने की एक नौकरी की थी - ' अदिति : शिल्प और बाल जीवन' नामक राजीव सेठी कृ्त शिल्प प्रदर्शनी में । प्रदर्शनी की थीम के अनुरूप यह गीत था सो उसका उपयोग किया गया । बनारस में शिल्प एकत्र करने के अलावा प्रदर्शनी के लिए गीत जुटाने और उनके अनुवाद में मैंने मदद की थी । अपनी बिटिया को लोरी के रूप में यह गीत सुनाता था।
डाउनलोड हेतु
Tuesday, February 10, 2009
पंडित भीमसेन जोशी व उस्ताद राशिद खान:राग शंकरा:परिचय उस्ताद विलायत खान
Tuesday, February 3, 2009
' हमनी के रहब जानी , दूनो परानी ' : शारदा सिन्हा
Saturday, January 31, 2009
Tuesday, January 13, 2009
मन्दी में मन्द होता ऑनलाइन संगीत और महेन का सवाल
हिन्दी ब्लॉग जगत में संगीत पेश करने वाले इन दिनों कुछ झुँझलाहट से गुजर रहे हैं । चिट्ठे पर संगीत चढ़ाने की मुफ़्त सुविधा देने वाली कम्पनियों ने अपना हाथ खींचना शुरु कर दिया है । कुछ पूरी तरह बन्द हैं तथा कुछ ने 'मुफ़्त' श्रेणी से यह सुविधा हटा ली है । एक साथ कई कम्पनियों की सेवाओं में कटौती झेलते हुए यह लगता है कि वैश्विक आर्थिक मन्दी से वे मन्द हो गयी हैं ।
लाइफ़्लॉगर महीनों से 'हिचकियाँ' ले रहा है । जिन लोगों ने इसकी मुफ़्त सदस्यता ले कर गीत / विडियो चढ़ाये थे उन तक पहुँच पाना भी नामुमकिन हो गया है।
स्प्लैशकास्ट्मीडिया ने आपके निजी कम्प्यूटर से ऑडियो / विडियो टुकड़ों को ऑनलाइन चढ़ाने की सुविधा मुफ़्त श्रेणी से हटा ली है । गनीमत है कि इस दौर के पहले चढ़ाए गीतों से आप मरहूम नहीं हुए हैं ।
गनीमत है ऑनलाइन विडियो डाउनलोड करने की सुविधा रियल प्लेयर ने अभी नहीं छीनी । इसके मुफ़्त संस्करण से भी आप यूट्यूब के विडियो अत्यन्त सरल तरीके से डाउनलोड कर पाते हैं । इसका एक बड़ा गुण है कि कि एक बार डाउनलोड करने के बाद आप बिना व्यवधान सुन/देख पाते हैं । रियल प्लेयर से स्प्लैशकास्टमीडिया पर गीत चढ़ाने पर बिना रुकावट गीत सुने जा सकते थे ।
डिवशेयर ने अब तक कटौतियाँ शुरु नहीं की हैं । संगीत प्रेमी चिट्ठेकार डर रहे हैं कि ऐसा न हो । अन्य विकल्प भी आजमाने का समय आ गया है ।
मन्दी के इस दौर में मन्डी के गीत सुनकर महेन ने एक बुनियादी सवाल उठा दिया है - " कहाँ से जुटा लाते हैं ऐसे अप्राप्य गीत? "
इस सवाल का बुनियादी जवाब है , " मैत्री द्वारा ।" मैंने आज तक गीत-संगीत-सिनेमा का सीडी / डीवीडी नहीं खरीदा। सभी गीत ऑनलाइन हासिल किए हैं । ईस्नाइप और यूट्यूब जैसी साइट पर संगीत प्रेमियों से 'दोस्ती' हो जाने पर यह अत्यन्त सहज हो जाता है। 'मित्र' जब ईस्नाइप पर गीत चढ़ाते हैं तो सूचित करते हैं और शुरु में उसे डाउनलोड करने लायक रखते हैं । मेरी तरह कॉपीराइट पेटेण्ट में यकीन न रखने वालों की तादाद कम नहीं है तथा इनकी आपसी मैत्री का मुख्य आधार संगीत का आदान प्रदान होता है । ईस्नाइप पर सर्वाधिक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत चढ़ाने वाले बन्दे ने ईस्नाईप से डाउनलोड की विधि भी अपने पेज पर दी हुई है ।
हिन्दी ब्लॉगजगत में संगीत प्रेमी इस कठिन दौर में कर्णप्रिय संगीत पेश करते रहेंगे , उम्मीद है ।
अब देखिए , आज किशोर कुमार ( अभिनय ) के लिए मोहम्मद रफ़ी द्वारा गाया गीत सीधे पेश नहीं कर पा रहा हूं। आपको डिवशेयर से फाइल डाउनलोड करनी होगी । लेकिन गीत कर्णप्रिय है ।
Sunday, January 4, 2009
मण्डी के कुछ गीत
जाड़ा-पाला में सुनिए । गनवा लगा के घोंसले में घु्स जाइए फिर बताइए ।
हर में हर को देखा
इश्क के शोले को भड़काओ
शमशीर बरैना
ज़बाने बदलते हैं