छात्र युवा संघर्ष वाहिनी , नौजवानों की जिस जमात से आपात-काल के खत्म होते होते जुड़ा उसने 'सांस्कृतिक क्रान्ति' का महत्व समझा । भवानी बाबू ने इस जमात को कहा ' सुरा-बेसुरा ' जैसा भी हो गाओ। सो , सुरे-बेसुरे गीतों का यह चिट्ठा ।
Monday, August 3, 2009
जगजीत सिंह - चित्रा सिंह की चुनिन्दा - अविस्मरणीय गज़लें
इतनी सुनी हुई गज़लें हैं ये, गोया ज़िन्दगी का हिस्सा हैं ....फिर भी आज एक अर्से के बाद सुना तो वोही नशा तारी है ... जैसा तब हुआ था जब मैं ने इन्हें पहली बार सुना था ..... The Unforgettables को शायद १९८० के अंत में या १९८१ के शुरू में. ख़ासकर "बात निकलेगी तो फिर........." .... नज़्म तो खैर है ही बेमिसाल, किसी नज़्म की इतनी बेहतरीन अदायगी शायद बहुत कम हुई हो ......
शुक्रिया वो पुराने दिन ज़हन में फिर से ताजा करने के लिए.
इतनी सुनी हुई गज़लें हैं ये, गोया ज़िन्दगी का हिस्सा हैं ....फिर भी आज एक अर्से के बाद सुना तो वोही नशा तारी है ... जैसा तब हुआ था जब मैं ने इन्हें पहली बार सुना था ..... The Unforgettables को शायद १९८० के अंत में या १९८१ के शुरू में. ख़ासकर "बात निकलेगी तो फिर........." .... नज़्म तो खैर है ही बेमिसाल, किसी नज़्म की इतनी बेहतरीन अदायगी शायद बहुत कम हुई हो ......
ReplyDeleteशुक्रिया वो पुराने दिन ज़हन में फिर से ताजा करने के लिए.
बहुत बहुत आभार ...
ReplyDeleteलाजवाब ...!!
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन पोस्ट...
ReplyDeletethese are really a nice gazals, thanks for remebering me these good old numbers. One thing more i have all these collection with me.
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