छात्र युवा संघर्ष वाहिनी , नौजवानों की जिस जमात से आपात-काल के खत्म होते होते जुड़ा उसने 'सांस्कृतिक क्रान्ति' का महत्व समझा । भवानी बाबू ने इस जमात को कहा ' सुरा-बेसुरा ' जैसा भी हो गाओ। सो , सुरे-बेसुरे गीतों का यह चिट्ठा ।
उस्ताद राशिदखान को सुनना हमेशा अच्छा लगता है। आज भी बहुत अच्छा लगा।
धन्यवाद,आनंद आ गया.
वाह ...बहुत सुँदर गायकी है - लावण्या
पसन्द - नापसन्द का इज़हार करें , बल मिलेगा ।
उस्ताद राशिदखान को सुनना हमेशा अच्छा लगता है। आज भी बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteधन्यवाद,आनंद आ गया.
ReplyDeleteवाह ...बहुत सुँदर गायकी है
ReplyDelete- लावण्या