छात्र युवा संघर्ष वाहिनी , नौजवानों की जिस जमात से आपात-काल के खत्म होते होते जुड़ा उसने 'सांस्कृतिक क्रान्ति' का महत्व समझा । भवानी बाबू ने इस जमात को कहा ' सुरा-बेसुरा ' जैसा भी हो गाओ। सो , सुरे-बेसुरे गीतों का यह चिट्ठा ।
Tuesday, March 31, 2009
उस्ताद राशिद खान / राग बहार / मतवारी कोयलिया डाल-डाल
बेहतरीन है यह! उस्ताद राशिद ख़ान वैसे भी अतिप्रिय हैं. राग बहार की ये वाली बन्दिश पहले कभी नहीं सुनी थी.
ReplyDeleteधन्यवाद साहब!
मन खुश खुश ..आभार
ReplyDeleteसुमधुर गीत का आभार -
ReplyDelete- लावण्या
दोहरा कर तीन बार सुन चुका हूँ, कैसे
ReplyDeleteआभार व्यक्त करूँ आप का इसे सुनाने के लिए?
हालाँकि प्ले करने के आधे घंटे बाद चला मगर खूब चला. अब ये बंदिश मुझे भी चाहिए...
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