छात्र युवा संघर्ष वाहिनी , नौजवानों की जिस जमात से आपात-काल के खत्म होते होते जुड़ा उसने 'सांस्कृतिक क्रान्ति' का महत्व समझा । भवानी बाबू ने इस जमात को कहा ' सुरा-बेसुरा ' जैसा भी हो गाओ। सो , सुरे-बेसुरे गीतों का यह चिट्ठा ।
Tuesday, April 21, 2009
' विरह विथा का को कहूं सजनी '
कल मेरी पत्नी डॉ. स्वाति उत्तर बंग में समाजवादी जनपरिषद के दो प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार करने गयी हैं । आज उनकी प्रिय एम. एस. सुब्बलक्ष्मी के स्वर में मीराबाई का यह भजन पेश कर रहा हूँ । वे लौटकर सुनेंगी । मैं आज सुन रहा हूँ। क्या पता गुनगुना रही हों , चुनावी सभाओं के बीच के अन्तराल में !
अफलातून भाई, सुश्री सुब्बालक्ष्मी जी की गायकी सदा से दीव्य लगती रही है - सुँदर प्रयास के लिये आभार !
ReplyDeletebahut umdaa !
ReplyDeleteआप इतने ज़बरदस्त संगीतप्रेमी हैं, ये पता नहीं था!
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