वनराज भाटिया द्वारा संगीतबद्ध दस गीत यहाँ पेश किए थे । रसिकों ने सराहा था । आज श्याम बेनेगल की मण्डी के चार गीत मिल गये ।
जाड़ा-पाला में सुनिए । गनवा लगा के घोंसले में घु्स जाइए फिर बताइए ।
हर में हर को देखा
इश्क के शोले को भड़काओ
शमशीर बरैना
ज़बाने बदलते हैं
बहुत दिनों के बाद सुने ये गीत! आप का आभार!
ReplyDeleteसुनने का तो बड़ा मन है, लेकिन कंप्यूटर में स्पीकर नहीं है। वैसे जब देखता हूं आपका यही ब्लाग खुल जाता है। विचारों की उल्टी करने वाला कोई ब्लॉग नहीं है क्या?
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteअफ़लातूनजी,
ReplyDeleteकैसे आपका शुक्रिया अदा करें । "हर में हर को देखा" को एक अरसे से खोज रहे थे, आज मिला है तो बस मस्त होकर सुने जा रहे हैं । इसके आगे गंगा जमुनी तहजीब की और कोई दलील बाकी है क्या?
बहुत आभार,
प्रस्तुति का धन्यवाद! मुझे याद है. जितनी अच्छी फ़िल्म थी उतना ही अच्छा संगीत भी था.
ReplyDeleteएक से एक सुन्दर व मधुर गीत सुनवाने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
आपने तो आनन्दोत्सव की मण्डी लगा दी। एक से एक अनुठी बन्दिश।
ReplyDeleteआपने गूंगे को गुड खिलाया और स्वाद पूछ रहे हैं।
आप पर न्यौछावर।
आपने तो आनन्दोत्सव की मण्डी लगा दी। एक से एक अनूठी बन्दिश।
ReplyDeleteआपने गूंगे को गुड खिला दिया और स्वाद पूछ रहे हैं।
आप पर न्यौछावर।
Wah badhiya collection !shukriya aaj poora coolection nahin sun paya . ghar lautte hi fursat se sunoonga.
ReplyDeleteaabhaar..aabhaar
ReplyDeleteमन मगन-मगन!
ReplyDeleteकहाँ से जुटा लाते हैं ऐसे अप्राप्य गीत?
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