यह पोस्ट मेरी पत्नी स्वाति के लिए है। अच्छा सुनने की आदत उन्हीं की देन है । इसमें उनसे अच्छा सुनना शामिल है । दशकों से खराब रेकॉर्ड प्लेयर के कारण इनमें से ज्यादातर गीतों को सुनना नामुमकिन था । इन्टरनेट पर ये गीत मिले तब , जब 'तुम्हारे बिन जी ना लगे घर में ' (पेश संग्रह का एक गीत) की हालत में मैं अभी हफ़्ते भर अकेला था । एक शैक्षणिक अन्तर्राष्ट्रीय कॉन्फेरेंस में शरीक होने वे हैदराबाद गयी थीं । आज ही लौटी हैं ।
जब श्याम बेनेगल ने फिल्में बनानी शुरु कीं तब ही मैंने अकेले फिल्में देखनी शुरु कीं थी। अंकुर , निशांत और उसके बाद भूमिका , मंथन,मण्डी आदि । लगता था ऐसी ही फिल्में आयें । अनन्त नाग , साधू मेहर,शबाना आज़मी, गिरीश कर्नाड ,नासिरुद्दीन शाह,अमोल पालेकर ,स्मिता पाटिल , मोहन अगाशे,कुलभूषण खरबन्दा , अमरीश पुरी जैसों का श्रेष्ठ अभिनय ! भुपेन्द्र ,प्रीति सागर ,चन्द्रू आत्मा (सी.एच. आत्मा के पुत्र ),सरस्वती राणे , उत्तरा केलकर,फिरोज दस्तूर जैसे गायक -गायिका । गोविन्द निहलानी पहले बेनेगल के कैमेरा को संभालते थे फिर खुद निर्देशक हो गए ।
बेनेगल की फिल्मों में संगीत दिया अत्यन्त प्रतिभासम्पन्न वनराज भाटिया ने । मुम्बई में और विलायत में पश्चिमी संगीत की तालीम हासिल करने और दिल्ली विश्वविद्यालय में संगीतशास्त्र के अध्यापक रहने के बावजूद इन्होंने भारतीय संगीत की लोक परंपराओं को पकड़ा , उसका इतना खूबसूरत इस्तेमाल किया कि वह कत्तई कृत्रिम नहीं लगता । हैदराबाद के आसपास की दक्खन परम्परा , मराठी लावणी और नाट्य संगीत और गुजरात-राजस्थान की लोक संगीत परम्परा के साथ साथ शास्त्रीय संगीत का प्रयोग । इन गीतों में इन आंचलिक बोलियों और धुनों को भी आप सुन पायेंगे ।
गीतों के विवरण जितना जुटे दिए जा रहे हैं :
क्र.सं. मुखड़ा गायक / गायिका गीतकार फिल्म
१ 'मुन्दर बाजू ,भाग १' सरस्वती राणे ,मीना फाटखेकर --- भूमिका
२ 'मुन्दर बाजू , भाग २' सरस्वती राणे ,उत्तरा केलकर ---- भूमिका
३ 'घट-घट में राम रमैय्या' फिरोज़ दस्तूर ---- भूमिका
४ 'मेरा जिचकीला बालम ना आया' भूपेन्द्र,प्रीति सागर एवं साथी, वसंत देव भूमिका
५ 'मेरी जिन्दगी की कश्ती' चन्द्रू आत्मा, राजा मेंहदी अली खां भूमिका
६ 'मेरो गांव काँठा पारे' प्रीति सागर, नीति सागर मंथन
७ 'पिया बाज प्याला पीया जाय ना' प्रीति सागर, मोहम्मद कुली कुतुब शाह, निशांत
८ 'पिया तुज आशना हूं मैं' भूपेन्द्र, मोहम्मद कुली कुतुब शाह निशांत
९ 'सावन के दिन आये सजनवा' प्रीति सागर, मजरूह सुल्तानपुरी भूमिका
१० 'तुम्हारे बिन जी ना लगे घर में' प्रीति सागर, मजरूह सुल्तानपुरी भूमिका
नोट : नमूने और नुमाइन्दगी के लिए ये गीत प्रस्तुत किए गए हैं । विधिवत श्रवण के लिए सीडी खरींदें ।
ईद और दुर्गा पूजा के लिए मुबारकबाद !
सर आज तो आपने लूट लिया. अभी शुरू के दो सुने थे. फिर लालच आया और सीधे 'पिया तुज आशना हूं मैं' पर आ गया. अद्भुत आनन्द देने का आत्मा से धन्यवाद. चलिये स्वाति जी के हैदराबाद जाने के बहाने हमें यह दुर्लभ संगीत मिला. सीडी मिलने का ठिकाना बता पाएंगे क्या!
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया!
एकसे बढकर एक सुँदर गीत सुनवाने के लिये शुक्रिया और स्वाति जी की पसँद उम्दा है जी :)
ReplyDeleteसचमुच लूट लिया आपने, और देखिये हम मजे से लुटे जा रहे हैं।
ReplyDeleteअभी तो पहला गाना सुनते हुए टिप्पणी टाइप कर रहा हूँ। आगे देखते हैं, क्या क्या सुना कर लूटते हैं आप।
:)
दादा,
ReplyDeleteतबियत तर हो गई.अभी भी सुन ही रहा हूँ और सुनते सुनते ही टिप्पणी करने का मोह संवरण नहीं हो पा रहा. वनराज भाटिया जैसा क़ाबिल संगीतकार जर्मनी या स्पेन मे होता तो अब तक आठ दस ग्रॉमी अवॉर्ड जीत चुका होता.सरस्वती राणे को न जाने कितने बरस बाद सुना. बीना मधुर सुर बोल(राग भीमपलासी) में उनका अखण्ड स्वर हमेशा संगीतप्रेमियों के ह्र्दय में प्रतिध्वनित होता रहता है.उस्ताद अब्दुल क़रीम ख़ाँ साहब की साहबज़ादी सरस्वतीबाई हीराबाई बड़ोदेकर की अनुजा थीं.कैसे कैसे हीरे मोती दमकते रहे हैं भारतीय संगीत की विराट परम्परा में.नवरात्र की शुभबेला और ईद की पूर्वसंध्या पर भूमिका रूपी यह नायाब उपहार याद रहेग कई दिनों तक.
एक झटके में पूरा ख़ज़ाना लुटा दिया, हम तो ठहरे नंबरी संगीत चोर, ये सीडी आसानी से मिलते नहीं इसलिए जुगाड़ किया है इनको सीधे अपने एमपी3 प्लेयर में डालने का, धन्य हो गए हम. कबाड़खाना, यूनुस, पारूल, विमल वर्मा (ठुमरीवाले) के ख़ज़ाने से भी हमने बहुत माल उड़ाया है...उनका हमेशा ऋणी रहूँगा. धन्यवाद.
ReplyDeleteBehad sundar collection. Preeti Sagar ka jiya jaye na behtareen laga.
ReplyDeleteadhbhut post...bahut shukriyaa..der se sun paayi...shukr hai miss nahi hui
ReplyDeleteअदभुत.इस फ़िल्म को देखने का सौभाग्य नहीं मिल सका था. वैसे इस फ़िल्म के बंगले की शूटिंग देखी थी , पूणें के मोबोज़ होटेल में.
ReplyDeleteअब आस और प्यास बुझ गयी,मगर कब तक?
मुझे लगता है, 'नास्टेल्जिया' की इससे बेहतर अनुभति शायद ही और कोई हो। यह आपका उपकार है।
ReplyDeleteतकनीक से अनजान मुझ नासमझ को कोई वह तरीका बताए जिससे मैं इस खजाने को अपनी पेन ड्राइव मे उतार सकँ।
geeton ka chayan wakahi achha laga. Shyam Benegal ki aur anmol movie 'Suraj Ka Satva Ghoda' ka jikr karna chahata hoon, Joh sayad is retro mein shamil hona chahiye.
ReplyDeleteवाह . ख़ज़़ाना एक ही जगह. वनराज भाटिया न यूं तो फ़िल्मज़ डिवीज़न के लिए भी बहुत काम किया पर उनकी अपनी एक विशेष शैली जिसने उन्हें स्वतंत्र पहचान दिलाई.
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