छात्र युवा संघर्ष वाहिनी , नौजवानों की जिस जमात से आपात-काल के खत्म होते होते जुड़ा उसने 'सांस्कृतिक क्रान्ति' का महत्व समझा । भवानी बाबू ने इस जमात को कहा ' सुरा-बेसुरा ' जैसा भी हो गाओ। सो , सुरे-बेसुरे गीतों का यह चिट्ठा ।
Saturday, February 2, 2013
मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए क्यूं ? ग़ालिब / बेग़म अख़्तर
No comments:
Post a Comment
पसन्द - नापसन्द का इज़हार करें , बल मिलेगा ।