Saturday, August 30, 2008

'चाँदनी की पालकी में बैठकर' - पहेली

' चाँदनी की पालकी में बैठकर , कोई आने वाला है ' इस गीत को आप पूरा सुनें तथा देखें भी । आप को गायक - गायिका का नाम बताना है । गीत की विशेषता पर टिप्पणियाँ भी सादर आमंत्रित हैं । धुन सचिन देव बर्मन की है तथा गीत साहिर लुधियानवी का है ।
जवाब से इतर टिप्पणियों के लिए समय सीमा नहीं है । जवाब परसों यानी १ सितम्बर की सुबह तक लिए जाएंगे ।

Wednesday, August 27, 2008

मुकेश के स्वर में

कल श्रोता बिरादरी ने सूचना दी कि आज मुकेश की पुण्य तिथि है । संगीत वाले चिट्ठों ने मुकेश के गीत प्रस्तुत किए हैं । मैं भी अपनी पसन्द के कुछ गीत और विडियो प्रस्तुत कर रहा हूँ , उम्मीद है आप को भी पसन्द हों ।

Monday, August 25, 2008

विडियो पहेली परिणाम के बहाने 'बिन्दी'- चर्चा

२३ अगस्त को मैंने एक विडियो पहेली इसी ब्लॉग पर पूछी थी । पाँच मित्रों ने भाग लिया , जिनके उत्तर उसी पोस्ट की टिप्पणी के रूप में आज प्रकाशित कर दिए गए हैं । पाँचों मित्रों का मैं आभारी हूँ ।
यह गीत पहली बार सुना तब मुझे किसी भी भारतीय गीत से जुदा नहीं लगा । गीत मुझे काफ़ी मधुर लगा था और नायक-नायिका भी खुशनुमा लगे । मुझे तलत महमूद साहब की थोड़ी थोड़ी याद आई । फिर भाई साहब से चर्चा हुई तो उन्होंने बताया कि तलत साहब ने अभिनय भी किया है । इस कड़ी पर जाइएगा तो आपको तलत साहब की खुशनुमा तसवीरें मिलेंगी।
'हिन्दी फिल्मों को घोल कर पीए हुए' दिलीप कवठेकर साहब ने सब से विस्तृत उत्तर दिया । यह भारतीय नहीं है इस बात पर वे इन कारणों से आए :
"य़ह किसी भी हिंदुस्तानी फ़िल्म का गाना नही हो सकता. परिवेश, चेहरों के सांचे, माथे पर बिंदिया लिये एक भी महिला नही, कोई भी पहचान की सूरत नही, एक्स्ट्रा में भी नही."

उनके बताये कारण में दो बातें खटकी । 'चेहरों के सांचे' और 'माथे पर बिन्दिया लिये एक भी महिला' का न होना ! भारत , पाकिस्तान और बांग्लादेश के चेहरों के साँचों में अन्तर ! दिलीप भाई कभी स्पष्ट करेंगे । बिन्दिया वाली बात पर मेरी पत्नी डॉ.स्वाति ने कहा कि हिन्दू महिलाएं बिन्दी न लगाना अशुभ मानती हैं और इसीलिए मुस्लिम महिलाएं लगाना । इससे लगा कि क्या यह कोई धार्मिक फर्क है ? खोज शुरु की तो पता चला कि खोजा मुस्लिम महिलाएं ,बांग्लादेशी मुस्लिम महिलाएं तथा कर्नाटक की मुस्लिम महिलाएं तो व्यापक तौर पर बिन्दी लगाती हैं । फिर पाकिस्तानी पंजाबी गीत मिले बिन्दिया वाले और बांग्लादेशी भी । पाकिस्तान में एक अभिनेत्री का नाम भी बिन्दिया है । फिल्मी दाएरे से ऊपर उठने पर रूहानी और आध्यात्मिक पुट लिए - 'छाप तिलक सब छीनी रे,मों से नैना मिलाइके' तो भारत-पाक दोनों देशों में गाया जाता है ।
अब इससे उलट बात की पुष्टि करने की सोची - क्या भारतीय फिल्मों की नायिकाएं अनिवार्य तौर पर बिन्दी लगाती हैं? दो पसन्दीदा नए गीतों को सुना/देखा । दोनों की हिरोइनें बिना बिन्दी लगाए थीं । बिन्दी का मामला सांस्कृतिक प्रतीत हुआ , धार्मिक से ज्यादा ।
दो बांग्लादेशी गीत (सबीना यास्मीन और सलमा अख़्तर के विडियो );

पाकिस्तानी पंजाबी गीत :

और भारतीय फिल्म 'कभी अल्विदा न कहना' तथा 'लाइफ़ इन ए मेट्रो ' के गीत :


Saturday, August 23, 2008

एक विडियो पहेली

फिल्मी गीतों पर एक पहेली मैंने पहले पेश की थी । लोगों ने काफ़ी रुचि दिखाई थी । उस चिट्ठे (शैशव) पर अब तक की सर्वाधिक देखी गयी पोस्ट थी वह । विडियो चढ़ाना सीखने के बाद यह एक प्रश्न वाली पहेली प्रस्तुत है । एक मधुर गीत प्रस्तुत है । गीत के बारे में टिप्पणी तो आमंत्रित है ही सवाल भी पूछ रहा हूँ -
गीत कैसा लगा ? यह गीत किसने गाया है ? किस फिल्म का है ?दूसरे और तीसरे प्रश्न के उत्तर वाली टिप्पणियाँ २५ अगस्त को प्रकाशित होंगी ।


लचक - लचक चलत मोहन

इस चिट्ठे को शुरु करते वक्त कहा गया था कि सुरा-बेसुरा दोनों सुनाया जाएगा । यह गीत करीब ३३ वर्ष पहले सीखा था । मैं चाहता था कि जिनसे सीखा था उनके सुन्दर स्वर में प्रस्तुत कर सकूँ । यह संभव नहीं हुआ है ।
जन्माष्टमी के अवसर पर इसे झेल जाँए ।

एरी दैय्या , लचक लचक चलत मोहन, आवे,मन भावे




अधर अधर ,मधुर मधुर ,मुख से बंसी बजावे दैय्या ।




श्रवण कुण्डल ,चपल तोय ,मोर-मुकुट ,चन्द्र किरन




मन्द हसत, जीया में बसत ,सूरत मन रिझावे दैय्या॥

Friday, August 22, 2008

'शाम' पर चार मधुर फिल्मी गीत

डी. वी. पलुस्कर को सुनने वाले जो हिन्दी चिट्ठों पर पहुंचते हैं , अभी कम हैं । ऐसे में फिल्मी गीत सुनें :



हुई शाम उनका खयाल आ गया - मेरे हमदम मेरे दोस्त 

 रोज शाम आती थी - इम्तेहान


 दिन ढल जाए - गाइड

 वो शाम कुछ अजीब थी - ख़ामोशी



Wednesday, August 20, 2008

हिन्दुस्तानी शास्त्रीय रागों के नमूने : डी .वी. पलुस्कर

दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर का परिचय इस ब्लॉग के श्रोताओं को है । उनके गायन की तीन पोस्ट यहाँ पेश हो चुकी हैं । श्री संजय पटेल के अनुरोध ( तिलक कामोद ) पर यहाँ राग विभास , मालकौंस अदि यहाँ प्रस्तुत किए जा रहे हैं । सुधी श्रोता वृन्द रसास्वादन करेंगे ।

Tuesday, August 19, 2008

भजन / पलुस्कर / ई-स्वामी के नाम

डी. वी. पलुस्कर के गायन की प्रस्तुति पूर्व में भी की थी । इस बार ज्यादा प्रसिद्ध भजन प्रस्तुत हैं । बरसों बाद लताजी ने भी इन भजनों को उन्हीं धुनों में गाया ।
इस बार यह भजन विडियो के रूप में मिले थे , जिन्हें मैंने डाउनलोड किया रियल प्लेयर की मदद से । इससे मैं उन्हें बिना व्यवधान ( बफ़रिंग की वजह से ) सुन सकता हूँ । यूट्यूब वाले कई बार विडियो हटा देते हैं , तब भी आप द्वारा प्रकाशित विडियो अन्तर्ध्यान हो जाता है । इसके बाद मैं परेशान रहा कि इन्हें अपने चिट्ठे पर चढ़ाने की क्या तकनीक हो , उपाय हो ? 'ब्लॉगर' वाले लम्बे - लम्बे ब्लॉगर आई.डी दे कर 'समर्थन' से सम्पर्क का उपदेश दे रहे थे । इसी बीच हिन्दी चिट्ठेकारी की प्रणेताओं में एक श्री ई-स्वामी ने मुझे इसका समाधान बताया । प्रयोग उन्हींके नाम समर्पित है ।
प्रस्तुति पर राय विशेष रूप से आमंत्रित है ।

Monday, August 18, 2008

मीयाँ की मल्हार में व्यंग्य


शास्त्रीय संगीत पर आधारित व्यंग्य ! मुझे लगता है उत्कृष्ट व्यंग्य के साथ उत्कृष्ट शास्त्रीय संगीत का मेल बैठाना अत्यन्त हूनरमन्द ही कर सकते हैं । ऐसे कभी कदाच ही मुमकिन होता है । मेरे होश में आने के बाद सुनील दत्त / किशोर कुमार बनाम महमूद (मन्ना डे) की पडोसन में हुई स्पर्धा ही इस श्रेणी में गिनी जाएगी ।
शंकर जयकिशन द्वारा संगीतबद्ध इस गीत में मन्ना डे के साथ किसी पक्के शास्त्रीय गायक के टुकड़े भी हैं । क्या वह पण्डित भीमसेन जोशी की आवाज है ? गीत मियाँ की मल्हार में है।

प्रकाश अरोड़ा द्वारा निर्देशित इस श्वेत - श्याम फिल्म बूट पॉलिश (१९५४) में बेबी नाज़ , रतन कुमार,चाँद बुर्के और चरित्र अभिनेता डेविड अब्राहम ने अभिनय किया है। रतन कुमार की चर्चा मैंने इस पोस्ट में की है । इस फिल्म को सर्वोत्तम फिल्म के लिए फिल्म फ़ेयर पुरस्कार मिला । केन्स फिल्म समारोह में बाल कलाकार के रूप में बेबी नाज़ के उत्कृष्टअभिनय का विशेष उल्लेख किया गया । डेविड को सर्वोत्तम सहायक अभिनय के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार मिला था। विडियो यहां देखें ।

Sunday, August 17, 2008

ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते : फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

'कोई इनकी सोई हुई दुम हिला दे '-
उर्दू के क्रान्तिकारी कवि फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की यह छोटी-सी , सरल किन्तु सशक्त कविता इस विडियो में अनवर क़ुरैशी द्वारा पढ़ी गयी है । सुनते/देखते हुए इन दोनों मुल्कों की सामाजिक और सियासी छबियाँ भी तिरने लगती हैं ।

Friday, August 15, 2008

दो बाल फिल्मी गीत बापू पर

मीत द्वारा प्रस्तुत तीन बाल-गीतों से प्रेरित हो कर बच्चों के लिए दो फिल्मी गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ । एक आशा भोंसले ने गाया है , हेमन्त कुमार का संगीत है , फिल्म है जागृति,शब्द कवि प्रदीप के हैं । दूसरा गीत मोहम्मद रफ़ी का गाया है लेकिन शब्द रचना राजेन्द्र कृष्ण की है?





Wednesday, August 13, 2008

रात पिया के संग जागी रे सखी/जाँनिसार अख़्तर/मीनू पुरुषोत्तम

फिल्म प्रेम परबत के लिए यह गीत मीनू पुरुषोत्तम ने गाया है । गीत के बोल जाँनिसार अख़्तर के हैं और धुन जयदेव की । इस फिल्म का 'ये दिल और उनकी निगाहों के साए' ज्यादा चर्चित रहा है । सुधी श्रोता रस लेंगे :


Tuesday, August 12, 2008

'रामू तो दिवाना है'/सुमन कल्याणपुर

एक साधारण-सी धुन में सरल भावों वाला यह गीत किसीने esnips पर म्यानमार से पोस्ट किया है । इस गीत के बारे में अतिरिक्त जानकारी यदि कोई दे पाता ! कौन सी फिल्म का ,शब्द किसके हैं और संगीत किसका है ? ऐसा तो नहीं कि सुमन कल्याणपुर का गाया गीत होने की वजह से कहीं दफ़न कर दिया गया था ?
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Saturday, August 9, 2008

सुने री मैंने निर्बल के बल राम/पलुस्कर/भैरवी

सूरदास की भक्ति रचना , 'सुने री मैंने निर्बल के बल राम ', स्वर पंडित डी . वी. पलुस्कर का , राग - भैरवी ।

Thursday, August 7, 2008

सावन ,बरखा,मेघ,बिजुरिया के गीत नए भी हैं

संगीत पारखी आदरणीय संजय पटेलजी ने 'श्रोता बिरादरी ' में कमल बारोट और सुमन कल्याणपुर का गीत प्रस्तुत करते वक्त कहा कि अब 'सावन' , 'बरखा','मेघ','बदरा' गीतों में क्यों नहीं आते? मुझे बार बार लगा कि बरसात की एक रात के बाद से कितने गीत फिल्मों में आए होंगे?
आज ऐसे कुछ दुर्लभ गीत प्रस्तुत हैं । सरदारी बेगम , आरती टिकेकर , हरिहरन और मन्ना डे जैसे कलाकारों के स्वर में ।














एक से बढ़कर एक नगीने चुन कर लाये हैं ज़नाब.
आरती तिकेकर का गाया घिर घिर आये बदरिया तो मेरा बेहद मनपसंद गीत है.
- मैथिली
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मैथिलीजी , आभार आरती टिकेकर का नाम बता कर। अंतिम गीत मन्ना डे का है।
- अफ़लातून
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प्रीति सागर और आरती अंकलीकर के गाए और आपके द्वारा प्रस्तुत वर्षा-गीत तो मेरे भी पसंदीदा गीत हैं . इन सदाबहार गीतों को पुनः सुनवाने के लिए आभार ! - प्रियंकर
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wah wah kya baat hai...itii badhiya post..aanandum aanandum...aabhaar
Parul
aur manna dey ke is geet ki jitni taareef ki jaye kum hai...
-Parul

Monday, August 4, 2008

झमकी झुकी आई बदरिया / डॉ. अनीता सेन

डॉ. श्रीमती अनीता सेन द्वारा पिछले दिनों विविध भारती पर कार्यक्रम प्रस्तुत किया जा रहा था । उनके गायन का प्रभाव ऐसा पड़ा कि खोज शुरु कर दी । सफलता भी मिली । 'आगाज़ ' के रसिक श्रोताओं की खिदमत में पेश है यह ऋतुअनुकूल प्रस्तुति - कजरी

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Sunday, August 3, 2008

Friday, August 1, 2008

गाना माने प्यार करना, हाँ कहना , उड़ना और ऊँचे उड़ना


पिछले हिस्से से आगे : सभा जोन बाएज़ द्वारा संचालित अहिंसा प्रशिक्षण केन्द्र में थे । सेनफ्रान्सिस्को तथा आसपास के कई जवान आये थे । दो - तीन घण्टे तक मुझसे प्रश्नोत्तरी चलती रही ।
सभा के बाद मुझसे कहा गया कि जोन तो अपने घर चली गयी है , लेकिन शाम को अपने यहाँ आने का निमत्रण दे गई है ।
एक पहाड़ी पर जोन और डेविड का घर था । डेवि्ड तो अभी जेल काट रहा था । जोन उसके जेल जाने के बारे में कहानियाँ कह और गाने गाकर लोगों को युद्ध का विरोध सिखाती थी । जोन के पेट में बच्चा था , जिसका वह बहुत गर्व अनुभव करती थी । किसी बालक की-सी सरलता से वह अपना पेट मित्रों को दिखाती रहती थी ।
बात तो कोई खास करने की थी ही नहीं । लेकिन उन दिनों जोन के साथ जेकी नामक एक जवान रहता था । उसने मुझे प्रश्न पूछना शुरु किया । योग के बारे में , ध्यान के बारे में , भारत के बारे में कई प्रश्न पूछ डाले । मेरे जवाबों को जोन ध्यान से सुनती रही ।
जेकी जब कहीं बाहर गया तब जोन ने कहा : " यह लड़का तुम्हें फिजूल के प्रश्न पूछ कर तंग करता है , नहीं ?" मैंने कहा : उसके प्रश्न उसके लिए तो वास्तविक मालूम हो रहे हैं । हाँ , मेरे जवाबों से उसे संतोष होता होगा या नहीं , मैं नहीं जानता । " उसने मुझे पूछा : "तुम इस समय का क्या उपयोग करना चाहोगे ? " मैंने कहा : "संगीत।"
अपना गिटार थमाते हुए जोन ने कहा : "तुम गाओगे?"
मैंने कहा : "क्या संगीत गाया ही जाता है , सुना नहीं जाता ?"
वह हँस पड़ी और फिर गिटार के तार ठीक करने लग गयी । यह गिटार एक बार कोई चुरा ले गया था । लेकिन फिर शायद यह मालूम होने पर कि यह जोन बाएज़ का है , वह लौटा दिया गया था ।
गाने के लिए जोन को आग्रह नहीं करना पड़ता । वह गाती रही । मैं सुनता रहा । मंत्र-मुग्ध-सा सुनता रहा । अपने संगीत से जोन लाखों लोगों को डुला देती है । मैं अपने भाग्य को सराह रहा था , जो इतने निकट बैठ कर इस संगीत का सुधा-पान कर रहा था ।
एक पूरी शाम इस अमरीकन मीराबाई के भजन सुनने में बितायी। जाने से पहले उसने पूछा : "तुम क्या लोगे? कुछ खाओगे,कुछ पीओगे ?" इसे मैं क्या बताता ? क्या पेट भरना अब भी बाकी था? मैंने कहा:" खाना - पीना तो कुछ नहीं, लेकिन अगर माँग सकता हूँ तो तुम्हारा एक रेकार्ड दे दो ।" तुरंत उसने एक बदले दो रेकार्ड दे दिए ।उस पर अपने हस्ताक्षर भी कर दिए । एक रेकार्ड के कवर पर जोन बायेज़ का खुद का आँका हुआ चित्र है । जोन का पूरा व्यक्तित्व ही कलाकार का है। वह कलापूर्ण लिखती है , कलापूर्ण कविता बनाती है । और कलाकारों से इसमें कोई विशेषता हो तो वह यह है कि इसकी कला का एक उद्देश्य है मानव की मुक्ति । इसी कारण से वह शांतिवादी बनी है । इसी कारण वह संगीत के जलसे छोड़कर जेलखाने के चक्कर काटना पसंद करती है ।
उसका जीवन - चरित्र 'डे-ब्रेक' एक अनुपम कलाकृति है । देखिये शुरु के ही एक अध्याय में बालवाड़ी का यह दृश्य :"माँ कहती है कि बालवाड़ी से जब मैं पहले दिन लौटी , तब आते ही मैंने कहा कि मैं किसीके प्रेम में हूँ । मुझे एक जापानी लड़का याद है , जिसने मेरा ख्याल रखा और जिसने किसीके धक्के से मुझे बचाया था। जब लोगों ने मुझे खाने के लिए सेम दिए , तब मैंने उससे कहा कि इसको खाने से तो मुझे कै ही हो जाएगी । तब उसने मेरे लिए सेम को टेबुल के नीचे छिपा दिया था ।
" एक सेंट बर्नार्ड कुत्ते ने एक दिन मुझसे खेलना चाहा और उसने मुझे एक टीले से नीचे ढकेल दिया। मैं इतनी घबड़ा गयी कि मेरा पैण्ट ही गीला हो गया ।"
" एक लड़का था , जो मेरे साथ बैठकर दूध पीता था । वह फूल बहुत बीनता था। मैं हमेशा उसके सिर पर हाथ फेरना चाहती थी । बच्चे उसे लड़की-लड़की कहकर पुकारते थे ।"
या उस किताब का देखिये यह एक छोटा-सा अध्याय :
" गाना माने प्यार करना , हाँ कहना , उड़ना और ऊँचे उड़ना , सुननेवाले लोगों के हृदय में किनारे पर पहुँच जाना , उनसे यह कहना कि जीवन जीने के लिए है : प्यार है , कोई केवल वचन नहीं है , सुन्दरता अस्तित्व रखती है और उसकी खोज करनी चाहिए और पाना चाहिए। मृत्यु एक ऐसे ऐश की चीज है , जिसे जीवन में उतारने की अपेक्षा जिसके गाने गाना ही उचित है । गाना माने ईश्वर की स्तुति करना और डेफ़ोडिल पुष्पों की स्तुति करना है । और ईश्वर की स्तुति का अर्थ है उसका आभार मानना मेरे मर्यादित स्वरों के हर सुर से , मेरे कंठ के हर रंग से , मेरे श्रोताओं के हर दृष्टिपात से। हे ईश्वर , मैं तेरी आभारी हूँ: मुझे जन्म देने के लिए , पवन में झूमते हुए इन डेफ़ोडिल पुष्पों को देखने के वास्ते मुझे नयन देने के लिए । मेरे सब भाइयों और बहनों का क्रंदन सुनने के वास्ते मुझे श्रवण देने के लिए , भागकर आने के वास्ते मुझे चरण देने के लिए , गीले गालों को सुखाने के वास्ते मुझे हाथ देने के लिए , हँसने के लिए और गाने के लिए मुझे कंठ देने के लिए , इसलिए कि मैं तुम्हारे लिए गा सकूँ और डेफोडिल के लिए भी गा सकूँ - क्योंकि पुष्प भी तू ही है ।"

संगीत की यह परिभाषा जोन बायेज़ के जीवन में प्रकट होती है । इसीलिए उसकी तुलना प्राचीन मीराबाई या अर्वाचीन शुभलक्ष्मी से हो सकती है ।
जाते समय मैंने उससे पूछा : :बच्चे के नाम के बारे में विचार किया है?"
उन लोगों ने दो वाद्यों के नाम सोच रखे थे । लड़का हो तो एक नाम , लड़की हो तो दूसरा।
उसने मुझे पूछा: "क्यों तुम्हारा कोई सुझाव है?"
मैंने कहा : " भारतीय नाम रखना हो तो 'शांति' रखो । लड़के के लिए भी चलेगा , लड़की के लिए भी । " .