Saturday, January 23, 2010

नामालूम तरीके से नहीं आता है वसंतोत्सव

'वसंतोत्सव’ पर इस पोस्ट के साथ कविता का पाठ लगाना था । वर्डप्रेस में संभव नहीं हुआ । इसलिए यहाँ :

Monday, January 18, 2010

मार्टिन लूथर किंग के जनम दिन पर

अमेरिका में चले नागरिक - अधिकार आन्दोलन के नेता माटिन लूथर किंग महात्मा गांधी से प्रभावित थे । उनका जनम दिन १५ जनवरी को पड़ता है लेकिन अमेरिकी जनता इसे हमेशा निकट के सोमवार को मनाती है । गत शुक्रवार को वे ८१ वर्ष के होते। उनकी हत्या ४ अप्रैल १९६८ को हुई ।
आज उनके अभियान से जुड़े़ तीन गीतों के विडियो तथा ट्विटर पर आ रही उनकी हजारों सूक्तियों में से कुछ प्रस्तुत कर रहा हूँ ।

इस गीत में रंगभेद को एक हौसले और साथ ही व्यंग्य के साथ चुनौती दी गयी है । गायक पीट सीगर हैं ।
अश्वेत प्रार्थना ’ वी शाल ओवरकम ’ न सिर्फ़ नागरिक अधिकार आन्दोलन का मुख्य गीत बना अपितु अन्य देशों , अन्य भाषाओं में भी जन आन्दोलन में बतौर आवाहन गीत ( हम होंगे कामयाब ) लोकप्रिय हुआ :


पीट सीगर की तरह जोन बाएज़ भी नागरिक अधिकार तथा शान्ति आन्दोलन की प्रमुख हस्ती रही हैं और गायिका भी । उनके स्वर में :


ट्विटर पर आ रहे हजारों सन्देशों और सूक्तियों में से कुछ :
वे एक खाँटी नेता थे जो सर्व सम्मति की तलाश नहीं करता था उसका निर्माण करता था ।
’सही काम करने के लिए हर वक्त सही होता है ।
’”किसी मक़सद के लिए न मरने वाला व्यक्ति जीने के लायक नहीं । ’
मेरे तथा मेरे जैसे तमाम अफ़्रीकी-अमेरिकनों के लिए जहां हम पहुंचे हैं उसका मार्ग प्रशस्त करने के लिए उन्हें प्रणाम ।
’ यह न भूलना कि हिटलर ने जर्मनी में को भी किया एक आईन के तहत किया । ’
’ जीवन का सबसे जरूरी सवाल ,"तुम दूसरों के लिए क्या कर रहे हो ’
’ प्रेम वह एकमेव ताकत है जो दुश्मन को दोस्त में बदल दे ’
’ शान्ति सिर्फ़ एक दूरस्थ लक्ष्य नहीं , उसे हासिल करने का साधन भी है ’
’ चुपचाप जुल्म को कबूल लेने वाला उससे कम दोषी नहीं जो जुल्म का षड़यन्त्र रचता है ’
’ अंधेरा अंधेरे को भगा नहीं सकता,सिर्फ़ प्रकाश भगा सकता है । नफ़रत नफ़रत को खत्म नहीं कर सकती सिर्फ़ प्रेम कर सकता है । ’
’जिन्दगी में महत्व रखने वाले मुद्दों पर जिस दिन हम चुप्पी साधना शुरु करते हैं ,उस दिन जिन्दगी के अन्त की शुरुआत हो जाती है ’
तीन सम्बन्धित पोस्ट :
तीन बागी गायक

अशोक पाण्डे को समर्पित जोन बाएज़ पर पोस्ट
गाना माने प्यार करना , हाँ कहना ,उड़ना और ऊँचे उड़ना

Sunday, January 3, 2010

उम्र कब की बरस के सुफ़ेद हो गई,काली बदरी जवानी की छँटती नहीं !

गुलजार के शब्द ,विशाल भारद्वाज का संगीत , राहत फ़तह अली की आवाज और फिल्म इश्किया का यह गीत