[ प्रिय चिट्ठेकार अशोक पाण्डे को जोन बायेज़ पर केन्द्रित यह संस्मरणात्मक पोस्ट समर्पित करते हुए मुझे खुशी हो रही है। नारायण देसाई १९६९ में विश्व भ्रमण पर निकले थे तथा उनका यात्रा विवरण 'यत्र विश्वं भवत्येकनीडम् ' नाम से छपा था । पुस्तक अप्राप्य है । लेखक के पुस्तकालय से जुगाड़ हुआ है। ]
.... शाम को कार्मेल में जोन बायेज़ के माता - पिता के साथ ठहरा । उनके पिता तो इन्फ़्लुएन्जा के कारण बिछौने में थे। माता ने आते ही पूछा : "क्यों खाना-पीना किया या बाकी है ? मैं जानती ही थी कि तुम वेजिटेरियन होगे , इसलिए तुम्हारे लिए वेजिटेबल सूप तैयार रखा है ।"
कौन कहता है मेरी माँ नहीं रही ? वह तो मुझे दर्शन देती है उत्तरी अमरीका के पश्चिमी कोने के इस छोटे से कार्मेल गांव में भी ।
जोन बायेज़ के पिता बड़े वैज्ञानिक हैं । उनकी बीमारी के कारण उनसे अधिक बातें करने का मौका नहीं मिला । सारा घर ग्रामोफोन रेकार्ड तथा किताबों से भरा हुआ । सिर्फ मिस्टर बायेज़ का दफ़्तर बहुत व्यवस्थित था। श्री बायेज़ से एक किस्सा सुना। युनेस्को के काम के सिलसिले में वे रूस गये हुए थे किसी प्रतिनिधि-मंडल के साथ । उनके नाम में बायेज़ देखकर लोग पूछने लगे कि क्या आप जोन बायेज़ के कोई रिश्तेदार तो नहीं हैं ? पुत्री के नाम से अपना परिचय होते हुए देखकर इस विख्यात वैज्ञानिक ने बड़ा सन्तोष अनुभव किया होगा।
पुत्री से भेंट तो दूसरे दिन होने वाली थी । इस दिन तो उसकी माँ से ही परिचय करना था । माँ ने और कुछ नहीं किया होता और सिर्फ जोन को जन्म दिया होता तो भी वह धन्य हो जाती। लेकिन इस माँ ने तो जोन को संस्कार भी दिए थे । अपनी जीवन-कथा 'डे-ब्रेक' में जोन ने इसे बखूबी लिखा है । कैसे बचपन के जोन के भय के संस्कार श्रीमती बायेज़ ने प्रेम और धीरज दे-देकर मिटाये , कैसे एक साल तक छुट्टी पाने पर उस समय में जोन की सारी अभिव्यक्ति को प्रकाश मिला , कैसे उन्होंने जोन के साथ दो बार जेल में जाकर अन्य स्त्रियों का कारावास-भय मिटाया इत्यादि । रात को मुझे उसी खटिये पर सुलाया गया , जहाँ जोन आने पर सोती है । रातभर श्री बायेज़ पास के कमरे में खाँसते रहे । और जब तक जागा मैं इस जोड़े के बारे में सोचता रहा , जिसने अमरीका की सबसे प्रसिद्ध गायिका- या सबसे प्रसिद्ध शान्तिवादी ? - जोन बायेज़ को जन्म दिया था ।
दूसरे दिन जब पालो आल्टो में कई और लोगों के साथ जोन बायेज़ का भी परिचय कराया गया , तब कुछ क्षण तो मैं उसे पहचान ही न पाया । उसके दो कारण थे । एक तो , जोन ने अपने लम्बे बाल कटवा लिये थे । और दूसरा , परिचय करानेवाले ने मिसेज बायेज़ हेरिस कहकर उसका परिचय दिया था। चित्र में देखी हुई जोन लंबे बालवाली थी और मैं तो यह भूल ही गया था कि डेविड हेरिस नामक एक शांतिवादी से उसकी शादी हो चुकी थी।
लेकिन जब सहज ही उसके इर्द-गिर्द प्रशंसकों की भीड़ होने लग गयी , तब मैं अचानक समझ गया कि यही जोन बायेज़ थी ।
आमतौर पर अमरीका में सभा का आरंभ गीतों से नहीं होता । लेकिन मेरी प्रार्थना को उसने बिना किसी आग्रह के स्वीकार कर लिया। क्या अदभुत् कण्ठ है ! जितना मधुर उतना ही बुलंद। जितना दर्द उतना ही कंप । सुर किसी निर्झर की सहजता से बहते थे , किन्तु साथ ही यह भी पता चलता था कि इसके पीछे बरसों की साधना थी ।
[ जारी ]
जोन बायेज़ का यह संस्मरण पढ़वाने का बहुत धन्यवाद. और मुझ कबाड़ी को आपने यह लाजवाब पोस्ट समर्पित कर दी! ज़हे नसीब अफ़लातून जी!
ReplyDeleteपुस्तक अप्राप्य है, यह जानकर टीस महसूस हुई. मैं इसे पूरा पढ़ना चाहता था/हूं.
एक बार पुनः आभार.
suyogya vyakti ke lie suyogya vyakti kee suyogy vyakti dvara suyogy post!
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