Thursday, December 20, 2007

शाम सहमी न हो , रात हो न डरी , भोर की आंख फिर डबडबायी न हो

इसलिए राह संघर्ष की हम चुनें
जिंदगी आंसुओं से नहायी न हो
शाम सहमी न हो , रात हो न डरी
भोर की आंख फिर डबडबायी न हो ।। इसलिए...

सूर्य पर बादलों का न पहरा रहे
रोशनी रोशनाई में डूबी न हो
यूं न ईमान फुटपाथ पर हो पड़ा
हर समय आत्मा सबकी ऊबी न हो
आसमां पे टंगी हो न खुशहालियां
कैद महलों में सबकी कमाई न हो ॥ इसलिए ...

कोई अपनी खुशी के लिए गैर की
रोटियां छीन ले हम नहीं चाहते
छींटकर थोड़ा चारा कोई उम्र की
हर खुशी बीन ले हम नहीं चाहते
हो किसी के लिए मखमली बिस्तरा
और किसी के लिये एक चटाई न हो ॥ इसलिए ...

अब तमन्नाएं फिर न करें खुदकुशी
ख़्वाब पर ख़ौफ़ की चौकसी न रहे
श्रम के पांवों में हों न पड़ी बेड़ियां
शक्ति की पीठ अब ज्यादती ना सहे
दम न तोड़े कहीं भूख से बचपना
रोटियों के लिए अब लड़ाई न हो ॥ इसलिए ...

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[ कोई पाठक/ श्रोता यदि गीतकार का नाम बताएगा तो मैं यहाँ जोड़ना चाहूँगा । मैं श्रव्य हूँ । ]

Tuesday, December 18, 2007

हरीन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय का एक हिन्दी गीत


आशीर्वाद के आखिरी दृश्य में अशोक कुमार ( जोगी ठाकुर ) बरसों बाद अपने गांव लौट रहे हैं । फिल्म में वे कवि भी हैं और जिस बैलगाड़ी में बैठ कर वे आ रहे हैं उसका युवा गाड़ीवान उन्हीं का गीत गाता है 'जीवन से लम्बे हैं बन्धु ,ये जीवन के रस्ते' । फिर पगडण्डियों से जोगी ठाकुर जब गाँव में प्रविष्ट होते हैं तब अचानक एक विक्षिप्त-सा बुजुर्ग मादल के ताल ताक धिना धिन ताकुड़ नुकुड़ बोलता और उस ताल पर नाचता-सा उनके पीछे पीछे चल देता है । अशोक कुमार जब अचेत हो कर गिरते हैं तो इस बूढ़े के मुँह से निकला , 'जोगी ठाकुर' और पूरे गाँव में जनता के मन के निकट के इस कवि को देखने के लिए भीड़ जुट जाती है ।

रघु बावर्ची (राजेश खन्ना) जिस परिवार में पहुँचा है उसके सब से बुजुर्ग सदस्य (दादू) भी याद होंगे ? अपनी आवाज़ में बावर्ची में दादू ने गीत भी गाया है ।

जूली फिल्म के अंग्रेजी गीत की लाइनें याद हों - My love encloses, a plot of roses ?

गुपी गाईन , बाघा बाइन का जादूगर , विचित्र मन्त्रोच्चार करता?
साहित्य , राजनीति , रंगमंच और सिनेमा में उनकी रुचि थी । सरोजिनी नायडू उनकी बड़ी बहन थीं और समाजवादी नेत्री कमला देवी चट्टोपाध्याय उनकी पत्नी थीं(शादी लम्बी नहीं चली थी)। यह बहु-आयामी जीनियस थे - हरीन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय !

उनका लिखा यह गीत राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान लोकप्रिय हुआ था । धुन भी उन्हीं की बनाई हुई है । हमने अपने विद्यालय में डॉ. मन्जू सुन्दरम से सीखने की कोशिश की थी ।

तरुण अरुण से रंजित धरणी, नभ लोचन है लाल ।

मृदु समीर में नाचे तरणी, नदी बजावे ताल । ।

हमें नहीं धन-दौलत आस, है स्वच्छन्द हमारा हास ।

रिझा नहीं सकता है हमको , जग माया का जाल । ।

चले धरा के बन्धन तोड़ , छाया चुम्बित तट को छोड़ ।

नव प्रभात लाली के सन्मुख , चढाव चिट्टा पार । ।

शोक नदी में देह तरीको , चला न सीखो , चला न सीखो ।

जल्द कटेंगे दिन अब उनके , क्यों देते हो टाल । ।

चप्पू अचपल जल थल मार , दिन रहते कर बेड़ा पार ।

अबहिं आवेगा सुखदायक , धूसर सन्ध्याकाल । ।

Sunday, December 16, 2007

दरियाव की लहर : कबीर का गीत

दरियाव की लहर दरियाव है जी

दरिया और लहर में भिन्न न कोयम ।

उठे तो नीर है , बैठे तो नीर है

कहो जी दूसरा किस तरह होयम,

उसी का फेर के नाम लहर धरा,

लहर के कहे क्या नीर गोयम ।

जगत ही के फेर सब, जगत परब्रह्म में,

ज्ञान कर देखो कबीर गोयम ॥