पिछले हिस्से से आगे : सभा जोन बाएज़ द्वारा संचालित अहिंसा प्रशिक्षण केन्द्र में थे । सेनफ्रान्सिस्को तथा आसपास के कई जवान आये थे । दो - तीन घण्टे तक मुझसे प्रश्नोत्तरी चलती रही ।
सभा के बाद मुझसे कहा गया कि जोन तो अपने घर चली गयी है , लेकिन शाम को अपने यहाँ आने का निमत्रण दे गई है ।
एक पहाड़ी पर जोन और डेविड का घर था । डेवि्ड तो अभी जेल काट रहा था । जोन उसके जेल जाने के बारे में कहानियाँ कह और गाने गाकर लोगों को युद्ध का विरोध सिखाती थी । जोन के पेट में बच्चा था , जिसका वह बहुत गर्व अनुभव करती थी । किसी बालक की-सी सरलता से वह अपना पेट मित्रों को दिखाती रहती थी ।
बात तो कोई खास करने की थी ही नहीं । लेकिन उन दिनों जोन के साथ जेकी नामक एक जवान रहता था । उसने मुझे प्रश्न पूछना शुरु किया । योग के बारे में , ध्यान के बारे में , भारत के बारे में कई प्रश्न पूछ डाले । मेरे जवाबों को जोन ध्यान से सुनती रही ।
जेकी जब कहीं बाहर गया तब जोन ने कहा : " यह लड़का तुम्हें फिजूल के प्रश्न पूछ कर तंग करता है , नहीं ?" मैंने कहा : उसके प्रश्न उसके लिए तो वास्तविक मालूम हो रहे हैं । हाँ , मेरे जवाबों से उसे संतोष होता होगा या नहीं , मैं नहीं जानता । " उसने मुझे पूछा : "तुम इस समय का क्या उपयोग करना चाहोगे ? " मैंने कहा : "संगीत।"
अपना गिटार थमाते हुए जोन ने कहा : "तुम गाओगे?"
मैंने कहा : "क्या संगीत गाया ही जाता है , सुना नहीं जाता ?"
वह हँस पड़ी और फिर गिटार के तार ठीक करने लग गयी । यह गिटार एक बार कोई चुरा ले गया था । लेकिन फिर शायद यह मालूम होने पर कि यह जोन बाएज़ का है , वह लौटा दिया गया था ।
गाने के लिए जोन को आग्रह नहीं करना पड़ता । वह गाती रही । मैं सुनता रहा । मंत्र-मुग्ध-सा सुनता रहा । अपने संगीत से जोन लाखों लोगों को डुला देती है । मैं अपने भाग्य को सराह रहा था , जो इतने निकट बैठ कर इस संगीत का सुधा-पान कर रहा था ।
एक पूरी शाम इस अमरीकन मीराबाई के भजन सुनने में बितायी। जाने से पहले उसने पूछा : "तुम क्या लोगे? कुछ खाओगे,कुछ पीओगे ?" इसे मैं क्या बताता ? क्या पेट भरना अब भी बाकी था? मैंने कहा:" खाना - पीना तो कुछ नहीं, लेकिन अगर माँग सकता हूँ तो तुम्हारा एक रेकार्ड दे दो ।" तुरंत उसने एक बदले दो रेकार्ड दे दिए ।उस पर अपने हस्ताक्षर भी कर दिए । एक रेकार्ड के कवर पर जोन बायेज़ का खुद का आँका हुआ चित्र है । जोन का पूरा व्यक्तित्व ही कलाकार का है। वह कलापूर्ण लिखती है , कलापूर्ण कविता बनाती है । और कलाकारों से इसमें कोई विशेषता हो तो वह यह है कि इसकी कला का एक उद्देश्य है मानव की मुक्ति । इसी कारण से वह शांतिवादी बनी है । इसी कारण वह संगीत के जलसे छोड़कर जेलखाने के चक्कर काटना पसंद करती है ।
उसका जीवन - चरित्र 'डे-ब्रेक' एक अनुपम कलाकृति है । देखिये शुरु के ही एक अध्याय में बालवाड़ी का यह दृश्य :"माँ कहती है कि बालवाड़ी से जब मैं पहले दिन लौटी , तब आते ही मैंने कहा कि मैं किसीके प्रेम में हूँ । मुझे एक जापानी लड़का याद है , जिसने मेरा ख्याल रखा और जिसने किसीके धक्के से मुझे बचाया था। जब लोगों ने मुझे खाने के लिए सेम दिए , तब मैंने उससे कहा कि इसको खाने से तो मुझे कै ही हो जाएगी । तब उसने मेरे लिए सेम को टेबुल के नीचे छिपा दिया था ।
" एक सेंट बर्नार्ड कुत्ते ने एक दिन मुझसे खेलना चाहा और उसने मुझे एक टीले से नीचे ढकेल दिया। मैं इतनी घबड़ा गयी कि मेरा पैण्ट ही गीला हो गया ।"
" एक लड़का था , जो मेरे साथ बैठकर दूध पीता था । वह फूल बहुत बीनता था। मैं हमेशा उसके सिर पर हाथ फेरना चाहती थी । बच्चे उसे लड़की-लड़की कहकर पुकारते थे ।"
या उस किताब का देखिये यह एक छोटा-सा अध्याय :
" गाना माने प्यार करना , हाँ कहना , उड़ना और ऊँचे उड़ना , सुननेवाले लोगों के हृदय में किनारे पर पहुँच जाना , उनसे यह कहना कि जीवन जीने के लिए है : प्यार है , कोई केवल वचन नहीं है , सुन्दरता अस्तित्व रखती है और उसकी खोज करनी चाहिए और पाना चाहिए। मृत्यु एक ऐसे ऐश की चीज है , जिसे जीवन में उतारने की अपेक्षा जिसके गाने गाना ही उचित है । गाना माने ईश्वर की स्तुति करना और डेफ़ोडिल पुष्पों की स्तुति करना है । और ईश्वर की स्तुति का अर्थ है उसका आभार मानना मेरे मर्यादित स्वरों के हर सुर से , मेरे कंठ के हर रंग से , मेरे श्रोताओं के हर दृष्टिपात से। हे ईश्वर , मैं तेरी आभारी हूँ: मुझे जन्म देने के लिए , पवन में झूमते हुए इन डेफ़ोडिल पुष्पों को देखने के वास्ते मुझे नयन देने के लिए । मेरे सब भाइयों और बहनों का क्रंदन सुनने के वास्ते मुझे श्रवण देने के लिए , भागकर आने के वास्ते मुझे चरण देने के लिए , गीले गालों को सुखाने के वास्ते मुझे हाथ देने के लिए , हँसने के लिए और गाने के लिए मुझे कंठ देने के लिए , इसलिए कि मैं तुम्हारे लिए गा सकूँ और डेफोडिल के लिए भी गा सकूँ - क्योंकि पुष्प भी तू ही है ।"
संगीत की यह परिभाषा जोन बायेज़ के जीवन में प्रकट होती है । इसीलिए उसकी तुलना प्राचीन मीराबाई या अर्वाचीन शुभलक्ष्मी से हो सकती है ।
जाते समय मैंने उससे पूछा : :बच्चे के नाम के बारे में विचार किया है?"
उन लोगों ने दो वाद्यों के नाम सोच रखे थे । लड़का हो तो एक नाम , लड़की हो तो दूसरा।
उसने मुझे पूछा: "क्यों तुम्हारा कोई सुझाव है?"
मैंने कहा : " भारतीय नाम रखना हो तो 'शांति' रखो । लड़के के लिए भी चलेगा , लड़की के लिए भी । " .
वाह साब वाह. तनिक लालच के साथ पहले ही पूछ ले रहा हूं: अभी आगे और भी है न?
ReplyDeleteजैसा उसका संगीत, वैसा ही मिजाज़.
और मुझे तो यह तथ्य भी बहुत अच्छा लगा कि चोर यह जानने के बाद गिटार वापस छोड़ गया कि वह जोन बाएज़ का था.
कबाड़ख़ाने पर जोन का कोई गाना लगाऊंगा तो आपके इन दो लेखों को ज़रूर इस्तेमाल करूंगा. आप अनुमति देंगे तो.
आपका बहुत बहुत कृतज्ञ हूं इन संस्मरणों के लिए.
बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई।
ReplyDeleteविशुद्ध जादू. कमाल है. आनंद में गोते लगा रहा हूँ.
ReplyDeleteसुना नही जा सका--:(
ReplyDeleteफिर कोशिश कीजिए,मैंने इतने लम्बे अन्तराल के बाद फिर सुना ।
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