छात्र युवा संघर्ष वाहिनी , नौजवानों की जिस जमात से आपात-काल के खत्म होते होते जुड़ा उसने 'सांस्कृतिक क्रान्ति' का महत्व समझा । भवानी बाबू ने इस जमात को कहा ' सुरा-बेसुरा ' जैसा भी हो गाओ। सो , सुरे-बेसुरे गीतों का यह चिट्ठा ।
Monday, April 5, 2010
तू जी ऐ दिल जमाने के लिए/मन्ना डे/बादल/
खुदगर्ज़ दुनिया में ये,इंसान की पहचान है
जो पराई आग में जल जाये,वो इंसान है
अपने लिए जीए तो क्या जीए - २
तू जी ऐ दिल जमाने के लिए
अपने लिए
बाज़ार से जमाने के,
कुछ भी न हम खरींदेगे-२
हाँ, बेचकर खुशी अपनी औरों के गम खरीदेंगे
बुझते दिए जलाने के लिए-२
तू जी ऐ दिल,ज़माने के लिए
अपने लिए..
अपनी ख़ुदी को जो समझा,उसने ख़ुदा को पहचाना
आज़ाद फ़ितरतें इंसां, अंदाज़ क्या भला माना
सर ये नहीं झुकाने के लिए -२
तू जी ऐ दिल,ज़माने के लिए
अपने लिए..
हिम्मत बुलन्द है अपनी , पत्थर सी जान रखते हैं
कदमों तले ज़मीं तो क्या,
हम आसमान रख़ते हैं .
गिरते हुओं को उठाने के लिए
तू जी ऐ दिल,ज़माने के लिए
अपने लिए....
चल आफ़ताब लेकर चल,चल माहताब लेकर चल-२
तू अपनी एक ठोकर में सौ इंकलाब लेकर चल
जुल्म-ओ-सितम मिटाने के लिए
तू जी ऐ दिल जमाने के लिए
अपने लिए....
- जावेद अख़्तर नहीं जावेद अनवर
संगीतकार उषा खन्ना
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जो पराई आग में जल जले,वो इंसान है
ReplyDeletewow !!!!!!!!!!!!
जुल्म-ओ-सितम मिटाने के लिए
तू जी ऐ दिल जमाने के लिए
अपने लिए
yaha dil le liya aap ne
पूरा गीत आज पहली बार पढ़ा ।
ReplyDeleteयह गीत हास्टल में हम ख़ूब गाया करते थे…
ReplyDeleteअफ़लातून जी,
ReplyDeleteये गीत जब आया था तब जावेद अख्तर के फ़िल्मी सफ़र का आगाज़ नहीं हुआ था। ये गीत जावेद अनवर का लिखा हुआ है, जावेद अख्तर का नहीं। कृपया ठीक कर लें।
@ पवनजी,
ReplyDeleteआप बिलकुल सही हैं ,यह गीत जावेद अनवर का लिखा है। मैंने बिना अकल के नकल की - मक्षिका स्थाने मक्षिका वाले तर्क से। सुधार के लिए धन्यवाद।