छात्र युवा संघर्ष वाहिनी , नौजवानों की जिस जमात से आपात-काल के खत्म होते होते जुड़ा उसने 'सांस्कृतिक क्रान्ति' का महत्व समझा । भवानी बाबू ने इस जमात को कहा ' सुरा-बेसुरा ' जैसा भी हो गाओ। सो , सुरे-बेसुरे गीतों का यह चिट्ठा ।
Sunday, January 3, 2010
उम्र कब की बरस के सुफ़ेद हो गई,काली बदरी जवानी की छँटती नहीं !
गुलजार के शब्द ,विशाल भारद्वाज का संगीत , राहत फ़तह अली की आवाज और फिल्म इश्किया का यह गीत
अच्छी प्रस्तुति ! आभार ।
ReplyDeleteबढियां... मज़ा आ गया.
ReplyDeleteऑडियो तो मैंने भी डाला था सर,आपने स्पष्ट तरीके से डाला। शुक्रिया।.
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