हिन्दी चिट्ठालोक के दृढ लेखक अनिल रघुराज एक लम्बे अन्तराल के बाद लौटे हैं । खुद की तुलना महुआ घटवारिन से उन्होंने की ,यह दिल को छू गया । अपनी मीता (वहीदा रहमान ) को महुआ घटवारिन की कहानी सुनाता हीरामन ( राज कपूर )अनिल को बार बार याद आ रहा है ।
अनिल द्वारा फिर से चिट्ठाकारी की शुरुआत को समर्पित उनका प्रिय यह गीत यहाँ प्रस्तुत हैं :
अनिल जी की वापसी का इंतजार था। आप ने उन का सही स्वागत किया है। मैं भी आप के साथ हूँ।
ReplyDeleteअनिल रघुराज का गायब होना हमें भी बहुत खल रहा था. उनका वापिस लौटना भी सुखद लगा और यह गीत भी
ReplyDeleteवाकई, आंखें छलक आईं यह गीत सुनकर। अफलातून भाई तहेदिल से आपका शुक्रिया। और मैथिली जी और दिनेश जी, आप लोगों का आशीर्वाद रहा तो महुआ घटवारिन को कोई सौदागर पूरी तरह खरीद नहीं पाएगा। मेरा अपना स्पेस मुझसे कोई छीन नहीं सकता। हां, इसे बनाए रखने के लिए थोड़ी ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी। तो कर लेंगे, क्या है?
ReplyDeleteyahee to bat sukhanwaree kee. Mahua ghatwareen kee bhasha me kahun to- essssh...
ReplyDeleteअनुपस्थिति का कारण जान और यह जान कि चिट्ठा लेखन से मोह भंग कारण नहीं था अच्छा लगा । स्वागत है ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
इतने सुन्दर गीत को सुनवाने के लिए धन्यवाद ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
हमें भी इंतजार था...
ReplyDeleteऔर ये गीत !!!!
अफ्लूभाई...आप तो बस आप हैं।
जिंदाबाद.....
मैं अनिल रघुराज को और उनके बारे में कुछ नहीं जानता। आज पहली ही बार उनका नाम पढा । किन्तु खुद को 'महुआ घटवारिन'की जगह रख देने की उनकी बात से उनके मिजाज और मन का अनुमान लगाने की चेष्टा कर रहा हूं। ऐसे लोग ही कुछ कर गुजरने का जज्बा लिए होते हैं। ऐसे लोगों की कामयाबी हम सबकी जरूरत है।
ReplyDelete'तीसरी कसम' मेरी प्रियतम फिल्मों में से एक है। इसके सात शो लगातार देखे थे और उन दिनों रोने के सिवाय और कुछ भी नहीं किया था। मूल कहानी, अपने बचपने में ही पढी थी - हिन्द पाकेट बुक्स जब शुरु ही हुई थी, तब ।
सुनने वाले को फीनीक्स बना देने को आतुर कर देने वाला यह गीत सुनकर एक बार फिर उसी 'नाटेल्जिया' को जीया।
मीठे-मीठे दर्द भरे अतीत से कौन नहीं लिपटना चहेगा?
आपने तो आज जिन्दगी के कुछ लमहे सार्थक कर दिए।
शुक्रिया।