हमरी अटरिया पे आओ सँवरिया,देखा-देखी बलम हुई जाए।
प्रेम की भिक्षा मांगे भिखारन,लाज हमारी रखियो साजन।
आओ सजन तुम हमरे द्वारे,सारा झगड़ा खतम हुई जाए ॥
बेग़म अख़्तर का गाया यह दादरा आज पहली बार सुना । आशा है , आप लोगों को भी पसन्द आएगा ।
प्रेम की भिक्षा मांगे भिखारन,लाज हमारी रखियो साजन।
आओ सजन तुम हमरे द्वारे,सारा झगड़ा खतम हुई जाए ॥
बेग़म अख़्तर का गाया यह दादरा आज पहली बार सुना । आशा है , आप लोगों को भी पसन्द आएगा ।
excellent.
ReplyDeleteदादा,
ReplyDeleteबेगम अख़्तर गायकी का वो मेयार थीं जहाँ पहुँच पाना कु़दरत का करिश्मा ही कहा जा सकता है. वे बहुत ही चैतन्य कलाकार थीं.लाइव शोज़ में तो वे विलक्षण थीं.आज भी बचपन में देखी महफ़िलें दिमाग़ में तरोताज़ा हैं जब गाते हुए उनके नाम में हीरे का लौंग दमकता था. और उस पर कहर ढाती उनकी वह मुस्कुराहट ...ग़ज़ब.
क्या यक़ीन करेंगे कि एक बार वे इन्दौर तशरीफ़ लाईं और मालूम पड़ा कि उनके मुरीद रामूभैया दाते फ़्रेक्चर के कारण इन्दौर के महाराजा यशवंत राव होलकर चिकित्सालय (एमवाय)में भर्ती हैं तो वे स्टेशन से सीधे एम वाय पहुँची और वहाँ अस्पताल की चादर ज़मीन पर बिछा कर हारमोनियम खोल कर रामूभैया को ठुमरी सुनातीं रहीं.कहाँ हैं अब अपने फ़ैन के लिये ऐसे बेतक़ल्लुफ़ सिलसिले.कई बार कलाकारों की मेज़बान रहा हूँ और देखता हूँ कि कलाकार सीधे सितारा होटल के गद्दे तोड़ने के लिये बेसब्र है.उसे तो बस होटल पहुँचा दीजिये और शाम को आ जाइयेगा कार्यक्रम स्थल पर पहुँचाने .बेगम अख़्तर ने शास्त्र की मर्यादा में रहते हुए उपशास्त्रीय गायन और ग़ज़ल को अवाम तक पहुँचाया.एशिया महाद्वीप में ग़ज़ल नाम की इमारत की नींव का पहला पत्थर हैं...अख़्तरी बाई.शेर मुलाहिज़ा फ़रमाएँ...
हमने अपनी सदियाँ यहाँ दफ़नाई है
हम ज़मीनों की खुदाई में दिखाई देंगे.
(रामूभैया दाते :मराठी गायक अरूण दाते और संगीतकार रवि दाते के पूज्य पिता तो कुमार गंधर्व,वसंतराव देशपाड़े,भीमसेन जोशी,पु.ल.देशपांडे और बेगम अख़तर के अनन्य मुरीद थे और जैसे किसी कलाकार को किसी पदवी से नवाज़ा जाता है वैसे ही वे लाजवाब श्रोता के रूप में रसिकराज के रूप में पहचाने जाते थे)
बहुत दिनों नाद आज मिल ही गया मन माफिक संगीत. शुक्रिया भाई.
ReplyDeleteकुछ कहने भी पड़ेगा क्या मालिक ? मस्ती में हूँ ... चलिए इसी आवाज़ में एक दादरा सुनवाता हूँ मैं भी .... कि ठुमरी ?
ReplyDeletejanamdin ki badhaayi v shubhkaamnayen aapko..post bahut badhiyaa..
ReplyDeleteबहुत खूब, वाह गुरू मान गए मजा आ गया। सभी शब्द कम पड़ रहे हैं। वाह!
ReplyDeleteसुन कर आनंदित हुए जा रहे हैं, ज्यादा नहीं लिखेंगे, सुनने में व्यवधान होता है।
ReplyDelete:)
कुछ कह नहीं सकती, अब इस आवाज़ को और पसंद की चीज़ सुनवाने का शुक्रिया ही बस...
ReplyDeleteअफ्लातून जी इस पोस्ट के लिए बहुत शुक्रिया। मुझे आपसे यह भी कहना था की आपके सारे ब्लॉग और ख़ास कर समाजवादी जनपरिषद ब्लॉग मैं बहुत रूचि से पढता हूँ। कुछ सामयिक वार्ता के अंकों से और कुछ इस ब्लॉग के ज़रिये मुझे बहुत सीखने को मिला है।
ReplyDeleteकुछ महिना पहले आप मेरे ब्लॉग (http://thenoondaysun.blogspot.com) पर तशरीफ़ लाये थे और ग़ालिब की ग़ज़लों के podcast की request की थी। माफ़ी चाहता हूँ कि मैंने इसका कोई जवाब नहीं दिया। दरअसल मेरे ब्लॉग पर में सिर्फ़ शेरोन की commentary लिखता हूँ और उन्हें समझने की कोशिश करता हूँ। अभी तक पॉडकास्ट के बारे में नहीं सोचा। खैर बस इतना कहना था और अपना परिचय देना था। अगले साल मेरे कुछ research के लिए मै बनारस आने वाला हूँ। तब उम्मीद है आपसे मुलाकात भी होगी।
अमित