उलटी हो गयीं सब तदबीरें कुछ ना दवा ने काम किया
देख़ा इस बीमारि-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया
अहदे जवानी रो-रो काटी ,पीर में लें आखें मूँद
यानी रात बहुत थे जागे , सुबह हुई आराम किया
नाहक़ हम मजबूरों पर यह तोहमत है मुख़्तारी की
चाहते हैं सो आप करे हैं , हमको बस बदनाम किया
या के सुफ़ेद-ओ-स्याह में हम को दख़ल जो है सो इतना है
रात को रो-रो सुबह किया , या दिन को ज्यूं त्यूं शाम किया
मीर के दीन-ओ-मजहब को अब पूछते क्या हो उन ने तो
कश्का खींचा , दैर में बैठा , कब का तर्क इस्लाम किया ।
- मीर तक़ी मीर
उज्र आने में भी है , पास बुलाते भी नहीं
बाएस-ए-तर्के मुलाक़ात बताते भी नहीं
ख़ूब परदा है के चिलमन से लगे बैठे हैं
साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं
ज़ीस्त से तंग हो ऐ दाग़ तो जीते क्यों हो
जान प्यारी भी नहीं , जान से जाते भी नहीं
- दाग़
वो जो हम में तुम में क़रार था ,तुम्हें याद हो के ना याद हो
वही यानी वादा निबाह का ,तुम्हें याद हो के ना याद हो
वो नये गिले वो शिकायतें वो मजे मजे की हिकायतें
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो के ना याद हो
कोई बात ऐसी अगर हुई जो तुम्हारे जी को बुरी लगी
तो बयाँ से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो के ना याद हो
सुनो ज़िक्र है कई साल का , कोई वादा मुझ से था आप का
वो निभाने का तो ज़िक्र क्या,तुम्हें याद हो के ना याद हो
कभी हम में तुम में भी चाह थी ,कभी हम से तुम से भी राह थी
कभी हम भी तुम भी थे आशना,तुम्हें याद हो के न याद हो
हुए इत्तेफ़ाक़ से ग़र बहम,वो वफ़ा जताने को दम-ब-दम
गिला-ए-मलामत-ए-अर्क़बा,तुम्हें याद हो के ना याद हो
वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे बेशतर,वो करम के हाथ मेरे हाथ पर
मुझे सब हैं याद ज़रा ज़रा,तुम्हें याद हो के ना याद हो
कभी बैठे सब हैं जो रू-ब-रू तो इशारतों ही से गुफ़्तगू
वो बयान शौक किआ बरामला तुम्हें याद हो के ना याद हो
वो बिगाड़ना वस्ल की रात का , वो ना मानना किसी बात का
वो नहीं नहीं की हर आन अदा,तुम्हें याद हो के न याद हो
जिसे आप गिनते थे आशना जिसे आप कहते थे बावफ़ा
मैं वही हूँ 'मोमिन'-ए-मुब्तला ,तुम्हें याद हो के न याद हो
- मोमिन
मेरे हमनफ़स , मेरे हमनवा,
मुझे दोस्त बन के दग़ा ना दे
मैं हूँ दर्द-ए-इश्क़ से जाँ-वलब,
मुझे जिन्दगी की दुआ न दे
मेरे दाग़-ए-दिल से है रोशनी ,
इसी रोशनी से है जिन्दगी
मुझे डर है ऐ मेरे चारागर,
ये चिराग़ तू ही बुझा न दे
मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर ,
तेरा क्या भरोसा है चारागर
ये तेरी नवाज़िश-ए-मुख़्तसर,
मेरा दर्द और बढ़ा न दे
मेरा अज़्म इतना बुलन्द है
के पराये शोलों का डर नहीं
मुझे ख़ौफ़ आतिश-ए-ग़ुल से है,
ये कहीं चमन को जला न दे
वो उठे हैं लेके होम-ओ-सुबू,
अरे ओ 'शकील' कहाँ है तू
तेरा जाम लेने को बज़्म में
कोई और हाथ बढ़ा न दे !
- शकील बदायूँनी
सुंदर |
ReplyDeleteअफ़लातून जी हमें गीत इतने अच्छे लगे कि हमने अपने कंप्युटर पर सहेज के रख लिए है। आभार, भविष्य में भी ऐसी जानकारी देते रहिएगा। वैसे मेरे ब्लोग पर जो "जानने का हक है" गीत लगा है आशा है आप को अच्छा लगा होगा यूँ तो आप के लिए पुराना ही होगा।
ReplyDeleteek se badhkar ek...naayab post...
ReplyDeleteमेरे हमनफ़स , मेरे हमनवा,
ReplyDeleteमुझे दोस्त बन के दग़ा ना दे
मैं हूँ दर्द-ए-इश्क़ से जाँ-वलब,
मुझे जिन्दगी की दुआ न दे
बेहतरीन...
मेरे हमनफ़स , मेरे हमनवा,
ReplyDeleteमुझे दोस्त बन के दग़ा ना दे
मैं हूँ दर्द-ए-इश्क़ से जाँ-वलब,
मुझे जिन्दगी की दुआ न दे
मेरे दाग़-ए-दिल से है रोशनी ,
इसी रोशनी से है जिन्दगी
मुझे डर है ऐ मेरे चारागर,
ये चिराग़ तू ही बुझा न दे
bahut bahut khoobsoorat...aapke blog par aakar mind fresh ho jata hai...thanks