नीरज मंचीय गीतकार रहे हैं और फिल्मी भी । अपनी रचनाओं को वे अपनी धुन में ही कवि सम्मेलनों - मुशायरों में सुनाते थे। आज जो गीत यहाँ पेश है उसकी धुन शायद कवि सम्मेलन वाली ही होगी । हमने तरुण शान्ति सेना के साथियों से ही इसे सीखा था । भवानीप्रसाद मिश्र के गीत की इन पंक्तियों को मन में रख कर बेझिझक पेश कर रहा हूँ :
सुरा-बेसुरा कुछ न सोचेंगे आओ ।
कि जैसा भी सुर पास में है चढ़ाओ ॥
प्रिय श्रोताओं से गुजारिश है कि पूरा गीत सुनिएगा ।
गीत डाउनलोड हेतु
बहुत अच्छे ढंग से पाठ किया है.
ReplyDeleteदोपहर में सुनने के बाद अब फिर सुना. आगे भी इस तरह के कविता पाठ पोडकास्ट कीजिये.
achchi prastuti..par aisi peastuti ke sath bol likh bhi diya karein. padhte padhte sun kar anand dugna ho jata hai.
ReplyDeletebahut acchha laga ..shukriya
ReplyDeleteलाजवाब हैँ अल्फाज़ ऐसे मानोँ दमकते हुए नगीने होँ ..अफलातून जी ..वीर रस से गुँथी हुई कविता बहुत पसँद आई ..उत्तम प्रयास है !
ReplyDeleteसुन नहीं पाया अफ्लू भाई...
ReplyDeleteप्लेयर तो चला पर आवाज़ नहीं आई। अब दूसरा ईयरफोन लगाकर सुनता हूं।
achcha laga....
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