छात्र युवा संघर्ष वाहिनी , नौजवानों की जिस जमात से आपात-काल के खत्म होते होते जुड़ा उसने 'सांस्कृतिक क्रान्ति' का महत्व समझा । भवानी बाबू ने इस जमात को कहा ' सुरा-बेसुरा ' जैसा भी हो गाओ। सो , सुरे-बेसुरे गीतों का यह चिट्ठा ।
Sunday, August 17, 2008
ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते : फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
'कोई इनकी सोई हुई दुम हिला दे '- उर्दू के क्रान्तिकारी कवि फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की यह छोटी-सी , सरल किन्तु सशक्त कविता इस विडियो में अनवर क़ुरैशी द्वारा पढ़ी गयी है । सुनते/देखते हुए इन दोनों मुल्कों की सामाजिक और सियासी छबियाँ भी तिरने लगती हैं ।
एक लाख बार पढ़ी है ये रचना .... इतनी पसंद है मुझे. लेकिन इसे इस अंदाज़ से, इस रौशनी में पेश करने के बहुत बहुत शुक्रिया.
ReplyDeleteअगर मूड बने तो एक पोस्ट यहाँ देखियेगा :
http://kisseykahen.blogspot.com/2008/06/blog-post_14.html
एक अच्छी पोस्ट है ..शुक्रिया ...
ReplyDeleteयूं तो फैज साहब को पढ़ा बहुत पर नए अंदाज के लिए अनवर जी और आपका शुक्रिया। नेरेशन भी अच्छा लगा अनवर मियां।
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