छात्र युवा संघर्ष वाहिनी , नौजवानों की जिस जमात से आपात-काल के खत्म होते होते जुड़ा उसने 'सांस्कृतिक क्रान्ति' का महत्व समझा । भवानी बाबू ने इस जमात को कहा ' सुरा-बेसुरा ' जैसा भी हो गाओ। सो , सुरे-बेसुरे गीतों का यह चिट्ठा ।
Monday, August 4, 2008
झमकी झुकी आई बदरिया / डॉ. अनीता सेन
डॉ. श्रीमती अनीता सेन द्वारा पिछले दिनों विविध भारती पर कार्यक्रम प्रस्तुत किया जा रहा था । उनके गायन का प्रभाव ऐसा पड़ा कि खोज शुरु कर दी । सफलता भी मिली । 'आगाज़ ' के रसिक श्रोताओं की खिदमत में पेश है यह ऋतुअनुकूल प्रस्तुति - कजरी ।
क्या बात है, आज सुबह ही हम भाभी (1938) का गाना सुन रहे थे पारूल घोष की आवाज में .. झुकी आई रे बदरिया... और लीजिये आपने वह गीत डॉ अनीता जी की आवाज में सुनवा भी दिया। :)
अनीता जी की गाई कजरी 'झमकि झुकि आई बदरिया.....' ने आनंद से भर दिया .
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार !
क्या बात है, आज सुबह ही हम भाभी (1938) का गाना सुन रहे थे पारूल घोष की आवाज में .. झुकी आई रे बदरिया... और लीजिये आपने वह गीत डॉ अनीता जी की आवाज में सुनवा भी दिया। :)
ReplyDeleteधन्यवाद
shukriya nahin suna tha kabhi ise. achcha laga sunkar.
ReplyDeleteshukriya nahin suna tha kabhi ise. achcha laga sunkar.
ReplyDeleteआप तो बहुतै बड़े खोजी निकले । धन्नबाद जी धन्नबाद ।
ReplyDeleteसुरीली तो है ही, सामयिक भी है.
ReplyDeleteखिड़की से दिख रही बूंदा बादीं में इसे सुनना एक स्वर्गिक अनुभव है.
अनीता जी की कजरी ने मन मोह लिया !आपको कोटिश; धन्यवाद ,इतने अच्छे गीत संगीत के लिए !
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