छात्र युवा संघर्ष वाहिनी , नौजवानों की जिस जमात से आपात-काल के खत्म होते होते जुड़ा उसने 'सांस्कृतिक क्रान्ति' का महत्व समझा । भवानी बाबू ने इस जमात को कहा ' सुरा-बेसुरा ' जैसा भी हो गाओ। सो , सुरे-बेसुरे गीतों का यह चिट्ठा ।
Friday, July 18, 2008
ना मैं लड़ी थी
कबीर की बेटी कमाली की रचना को आशा भोंसले स्वर में सुनें :
अरे आशा भौंसले ने भी गाया है इसे?
ReplyDeleteमैंने तो इसे लोक गीत के रूप में बहुत पहले बचपन में सुना था!
बहुत सुमधुर है ये!
अद्भुत है! धन्यवाद सर!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर. हम तो इसे सत्यम शिवम सुन्दरम फिल्म का एक गाना बस जानते थे. यह तो पहली बार सुन रहे हैं..आप के पास भी खजाना है.
ReplyDeleteshukriyaa...ashaa ki avaaz me pehli baar sunaa ise..
ReplyDeleteपरेशानी के आलम में कम से कम यहां तो सुकून मिला
ReplyDeleteलाज़बाव
ReplyDelete