छात्र युवा संघर्ष वाहिनी , नौजवानों की जिस जमात से आपात-काल के खत्म होते होते जुड़ा उसने 'सांस्कृतिक क्रान्ति' का महत्व समझा । भवानी बाबू ने इस जमात को कहा ' सुरा-बेसुरा ' जैसा भी हो गाओ। सो , सुरे-बेसुरे गीतों का यह चिट्ठा ।
Tuesday, May 20, 2008
फ़िराक की गज़ल , चित्रा सिंह की आवाज़
प्रसिद्ध शायर फ़िराक गोरखपुरी की गज़ल । प्रसिद्ध गज़ल गायिका चित्रा सिंह के स्वर में ।
चित्रा सिंह की आवाज़ हमें भी बहुत पसंद है. उनकी गाई तकरीबन सभी ग़ज़लें और भजन हमारे कलेक्शन में हैं. अफ़सोस कि व्यक्तिगत कारणों से अब उन्होंने गाना बंद कर रखा है.
ये हम सुननेवालों की बदक़िस्मती है कि आजकल चित्राजी सुनाईं नहीं देतीं.फ़िराक़ साहब की इस ग़ज़ल में चित्राजी की आवाज़ का फ़ोर्स सुनने क़ाबिल है.हमने चित्राजी के रूप मे ग़ज़ल गायकी का दमकता हीरा पाया है.और जगजीतजी की कम्पोज़िशन के क्या कहने.यहीं से ग़ज़लों का नया दौर शुरू हुआ था और बज़ने लगे थे सारंगी,हारमोनियम और तबले से हटकर कुछ नये साज़..जैसे मेंडोलिन,गिटार,वॉयलिन,की-बोर्ड,संतूर आदि.
बहुत ही सुन्दर गज़ल है। काफी रूक-रूक कर चल रही थी फिर भी सुनकर आनन्द आगया। चित्रा जी की और भी गज़लें सुनवाएँ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर .हमेशा से पसंद है यह गजल मुझे शुक्रिया इसको सुनाने के लिए
ReplyDeleteपहली बार ही रुकावट होगी ,दूसरी बार बिना रुकावट सुन पायेंगे ।
ReplyDeleteबरसों पहले सुनी ग़ज़ल को एक बार फ़िर सुनवाने का शुक्रिया.
ReplyDeleteनीरज
चित्रा सिंह की आवाज़ हमें भी बहुत पसंद है. उनकी गाई तकरीबन सभी ग़ज़लें और भजन हमारे कलेक्शन में हैं. अफ़सोस कि व्यक्तिगत कारणों से अब उन्होंने गाना बंद कर रखा है.
ReplyDeleteआनन्द आ गया.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..
ReplyDeleteये हम सुननेवालों की बदक़िस्मती है कि आजकल चित्राजी सुनाईं नहीं देतीं.फ़िराक़ साहब की इस ग़ज़ल में चित्राजी की आवाज़ का फ़ोर्स सुनने क़ाबिल है.हमने चित्राजी के रूप मे
ReplyDeleteग़ज़ल गायकी का दमकता हीरा पाया है.और जगजीतजी की कम्पोज़िशन के क्या कहने.यहीं से ग़ज़लों का नया दौर शुरू हुआ था और बज़ने लगे थे सारंगी,हारमोनियम और तबले से हटकर कुछ नये साज़..जैसे मेंडोलिन,गिटार,वॉयलिन,की-बोर्ड,संतूर आदि.