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कहाँ से आए बदरा
घुलता जाए कजरा
पलकों के सतरंगे दीपक
बन बैठे आँसू की झालर
मोती का अनमोलक हीरा
मिट्टी में जा फिसला ॥
नींद पिया के संग सिधारी
सपनों की सुखी फुलवारी
अमृत होठों तक आते ही
जैसे विष में बदला ॥
उतरे मेघ या फिर छाये
निर्दय झोंके अगन बढ़ाये
बरसे हैं अब तोसे सावन
रोए मन है पगला ॥
क्या बात है आजकल आप बहुत ही बढ़िया गाने सुनवा रहे है।
ReplyDeleteइंदु जैन जी के बारे में मैं ज्यादा नहीं जानता। वैसे ये गीत तो मुझे हमेशा से पसंद रहा है।
ReplyDeleteमेरे कुछ पसदीदा गीतों मे से एक.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत ! धन्यवाद ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती