Thursday, March 12, 2009

जर्मन रेडियो डॉएचे वेले पर गांधी - चर्चा


उज्ज्वल भट्टाचार्य मेरे शहर बनारस की वामपंथी युवा राजनीति से जुड़े रहे । १९७९ से जर्मनी में जर्मन रेडियो डॉएचे वेले के हिन्दी प्रभाग से जुड़े हैं । रेडियो पत्रकारिता के अलावा उज्ज्वल कविता और कहानी लिखते हैं । उन्होंने गेथे , हाइन , ब्रेख़्त , एनज़ेन्सबर्गर , ग्रास तथा हाइनर की रचनाओं के हिन्दी अनुवाद किए हैं तथा फ़ैज़ और रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कुछ रचनाओं के जर्मन में अनुवाद भी किए हैं । उज्ज्वल की जर्मन से अनुदित कवितायें - वतन की तलाश ( एरिक फ्रायड की कवितायें ) , भविष्य संगीत ( हान्स-मैग्नस एन्ज़ेन्सबर्गर की कविताएं) , एकोत्तरशती (ब्रेख़्त की १०१ कवितायें ), पता है तुम्हे उस देश का ( गेथे की कवितायें) प्रकाशित हो चुकी हैं ।

रेडियो जर्मनी डॉएचे वेले की साप्ताहिक सांस्कृतिक हिन्दी रेडियो पत्रिका ‘रंग तरंग’ में उज्जवल ने गत सोमवार को गांधीजी के सामानों की शराब तथा एयरलाइन्स व्यवसायी माल्या द्वारा बोली लगा कर खरीदने की चर्चा की । चर्चा का एक हिस्सा मुझसे बातचीत है । उक्त चर्चा की प्रस्तुति उनके जर्मन रेडियो डॉएचे वेले के प्रति आभार प्रकट कर यहाँ प्रकाशित कर रहा हूँ । मैं प्रसारण के वक्त इसे नहीं सुन पाया था । लंका स्थित ‘गार्जियन’ रामजी टंडन ने प्रसारण सुना था और प्रसन्न हो कर मुझे खबर दी थी। टंडनजी पर कभी अलग से चर्चा की जाएगी ।
सुनिए जर्मन रेडियो डॉएचे वेले के कार्यक्रम ‘रंग तरंग’ का यह अंक और अपनी राय भी प्रकट कीजिए -

7 comments:

  1. अफलातूनभाई ,
    जानकारी के लिये आभार !
    इस विषय पर सही बात क्या हुई ये जानना चहती थी और आपसे अच्छा और कोई नहीँ जो महात्मा जी पर बता पाये
    - लावण्या

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  2. इसे सुनना बहुत अच्छा लगा. इसके लिये उज्जवल भट्टाचार्य जी को बहुत बहुत धन्यवाद.

    "दफन कर दी गई गांधी जी की नीतियां इन पदार्थों से अधिक महत्वपूर्ण हैं", पूर्ण सहमति

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  3. यह बातचीत सुनवाने के लिए धन्यवाद। लावण्या जी की ही तरह मैं भी इस विषय पर विभिन्न लोगों, विशेषकर गाँधी जी से किसी भी रूप से जुड़े लोगों, के विचार जानना चाहती थी। आपके विचार जानकर खुशी हुई।
    हम गाँधी जी का चश्मा तो बोली लगाकर ला सकते हैं परन्तु उनकी दृष्टि नहीं ला सकते। मुझे लगता है कि उन्हें प्रगति से कोई शिकायत न होती, शिकायत होती तो ऐसी प्रगति से जिसमें सभी को सम्मिलित न किया जाता और जिसमें पर्यावरण की चिन्ता न की जाती। गाँधी जी के विचार हाशिए पर चले गए हैं, इस बात से भी उतनी शिकायत नहीं है जितनी इस बात की कि कुछ दल अपने आप को उनका उत्तराधिकारी दर्शाने से नहीं झिझकते जबकि उनके किसी भी आदर्श से उनका कोई लेना देना नहीं है। गाँधी जी को समझना बहुत कठिन है, उनकी राह पर चलना और भी कठिन है। परन्तु उन्हें समझने का प्रयास करना भी हमें बेहतर मनुष्य बना सकता है।
    चर्चा बहुत सामयिक है।
    घुघूती बासूती

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  4. जानकारी देने के लिए धन्‍यवाद ...

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  5. आपके इस पोस्ट पर प्रस्तुति सुन नही पा रहा हूं, क्योंकि कोई भी प्लेयर नही दिख रहा है?

    रेडियो डॊईश वेले को और कैसे सुना जा सकता है?

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  6. Priya Aflu bhai,Saadar namaskar. Aapka 'gandhiji ki saaman ki boli'per Ujjawal Bhattacharya ke saath interview suna.bahut hi aachha laga.Maine bhi kuch aise hi pratikriya kanhi vyaktya kiya tha.
    Ujjawal ke bare mein sanksipt jaankaari bhi bahut hi sadhi bhasa mein prastut ki gaye thi jise Aflu bhai jaisa vyakti hi likh sakata tha.
    kripaya bhabhi ko mere smriti dila dein.
    Aasha hai aap kushal mangal honge.
    Aap hum sabhi ko inspire karterahete hai.yah aap ki bahut bari upalabdhi hai.
    Saprem,
    Anil Tripathi

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  7. दिलीप जी, डॉएचे वेले के कार्यक्रम आप यहां सुन सकते हैं :

    www.dw-world.de/hindi

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