Thursday, August 20, 2009

ठुमक ठुमक पग ,कुमक कुंज मद,चपल चरण हरि आए/भीमसेन जोशी/जयदेव/अनिल चटर्जी/अनकही

अनकही (१९८५) फिल्म में लिया गया भीमसेन जोशी का गाया तुलसी का भजन "रघुवर तुमको मेरी लाज” इस चिट्ठे पर प्रकाशित किया था । वह भजन भी फिल्म में प्रसिद्ध बाँग्ला अभिनेता अनिल चटर्जी ( २५ अक्टूबर १९२९ - १७ मार्च १९९६ )गा रहे हैं । मेरे प्रिय मित्र - श्रोता विष्णु बैरागी ने तब कहा था , ’ पापाजी (जयदेवजी)ही ऐसे अनूठे और साहसी प्रयोग कर सकते थे। वे गीतों की धुनें नहीं रचते थे, आत्‍मा को शरीर प्रदान करते थे।’ फिल्म में इस पूरे गीत का फिल्मांकन - विष्णु भाई के कथन को पूरी तरह चरितार्थ करता हुआ ! दीप्ति नवल का प्रसव, श्रीराम लागू की पायचारी , दीना पाठक की चिन्ता , अनिल चटर्जी की निश्चन्तता , अमोल पालेकर की गति !
मानोषी ने तब बताया था कि "फिल्म का हर गाना उम्दा है " । ढ़ूँढ़ लिए थे गीत लेकिन सुनाने का जुगाड़ अब हो पाया।
कोई गीतकार का नाम बता दे !



[ प्लेयर पर कर्सर को निचले भाग में ले जायेंगे तो नियन्त्रण के औजार दिखाई देंगे। फिर से सुनने के लिए गीत समाप्त होने पर कर्सर निचले भाग में ले जाना होता है और खटका मारना होता है । फिर से सुनने , एम्बेड कोड और डाउनलोड के प्रावधान परदे पर प्रकट हो जाते हैं । डिवशेयर की खूबी है कि दूसरी बार (बफ़रिंग के पश्चात) सुनने पर बिलकुल रुकावट नहीं होती । ]

12 comments:

  1. बहुत उम्दा गीत......घडी की टिक-टिक के साथ अद्भुत शान्ति......

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  2. अफलातून जी इस रचना के रचनाकार का नाम नहीं मिला । वैसे इस फिल्‍म में कबीर, सूर वगैरह की रचनाएं ली गयी हैं । एक गीत बालकवि बैरागी का भी है ।

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    1. इस भजन के रचयिता हैं काज़ी अशरफ महमूद ।

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  3. आज बैठते ही पहला काम ये भजन सुनने का हुआ. भीमसेन जोशीजी के स्वर की गहराई और विश्वास, ख़ासकर इस भजन के संबंध में, ने मन को कॅप्टिवेट कर दिया. जब आत्मा की बात हो तो सांसारिकता (पात्रों) की बात कौन करे, नामालूम गीतकार का आभार, और साथ में आपका भी.

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  4. वाह वाह .... ...आनंदम आनदं ...
    पण्डित भीमसेन जोशी जी की दीव्य स्वर लहरी से मन पुलकित है
    परंतु,
    जो द्रश्य देखे उससे , अपने स्वयं पर बीते ऐसे ही क्षण याद आ गए ..
    जो यह दीखाया वह फिल्म है जो हमने भुगता वह यथार्थ था
    फिर भी, आज सिर्फ गीत को ही याद करेंगें ...और ..
    ईश्वर को आह्वान देंगें ....
    आभार आपका !

    --
    - लावण्या

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  5. आह! अफ़लातून जी,....इस गान का अंत नहीं होता. एक आर्त टेर सदा गूंजती रह जाती है. आभार...!

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  6. पंडित भीमसेन जोशी को सुनना सदैव ही अनुपम आनंद देता है। इस गीत को पहले अनेक बार सुना है। आज यात्रा से लौटते ही यह सुनने को मिला तो लगा सारी थकान उतर गई है।

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  7. शानदार गीत और उसके अनुरूप अनूठा संगीत,तिस पर पंडित जी का गुरु गंभीर स्वर . सब कुछ दिव्य .

    इस प्रस्तुति में है मानववाद का असली निदर्शन . शिशु की प्रतीक्षा ऐसे जैसे ईश्वर के अवतरण की प्रतीक्षा . यह मनुष्य की और उसके भीतर के देवता के आगमन की इन्तजारी का गीत है --अनूठा आगमनी गीत .

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  8. तमाम आशंकाओं और दुश्चिंताओं के मध्य आशा का -- आस्था का -- विश्वासी स्वर . ’डिवाइन’ को मनुष्य की अधिकारपूर्ण पुकार . यह पुकार सिर्फ़ मनुष्य कर सकता है . यह उसी की ईजाद है . अद्भुत गीत . आभार !

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  9. काज़ी अशरफ महमूद

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  10. इस भजन के रचयिता हैं - काज़ी अशरफ महमूद ।

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पसन्द - नापसन्द का इज़हार करें , बल मिलेगा ।