यह प्लेलिस्ट खासकर अपने अनिवासी मित्रों के लिए । हांलाकि आज-कल कई फिल्में तो पहले विदेशों में रिलीज की जा रही हैं । यह गीत मुझे कर्णप्रिय लगते हैं और नये भी हैं ।
छात्र युवा संघर्ष वाहिनी , नौजवानों की जिस जमात से आपात-काल के खत्म होते होते जुड़ा उसने 'सांस्कृतिक क्रान्ति' का महत्व समझा । भवानी बाबू ने इस जमात को कहा ' सुरा-बेसुरा ' जैसा भी हो गाओ। सो , सुरे-बेसुरे गीतों का यह चिट्ठा ।
Tuesday, December 13, 2011
Sunday, December 4, 2011
देव आनन्द : दिल अभी भरा नहीं
फेसबुक-युग में देव आनन्द का न रहना । कुछ मित्रों ने उन्हें उन्हींकी फिल्मों के गीतों को याद कर श्रद्धांजलि दी है। 'तेरी दुनिया में जीने से,बेहतर है कि मर जाएं'से शुरु कर ,'बादल,बिजली,चंदन,पानी जैसा अपना प्यार,लेना होगा जनम हमें कई-कई बार' से होते हुए 'बहुत दूर मुझे चले जाना है' तक।
बड़ी बहन की लेडीज साइकिल और घर से इजाजत लेकर जिन फिल्मों को अकेले देखा था उनमें प्रमुख थी 'हम दोनों'। फिल्म देखने के बाद के दिनों में एक पुराना ओवरकोट और दो हॉकी-स्टिक लेकर जब एक पांव से चलता था तब बा नाराज हो जाती थी ।
'७४ का आन्दोलन शुरु हुआ तब चर्चा सुनी कि '४२ के दिनों में देव आनन्द 'ऑगस्ट-क्रांति के नायक' जयप्रकाश से मिले थे। आपातकाल में सभी मौलिक अधिकारों के निलम्बित रहने के बाद जब आम चुनाव हुए तब देव आनन्द वरिष्टतम अभिनेता थे जिन्होंने खुलकर कांग्रेस को हराने की अपील की।
फिर बड़े भाई नचिकेता द्वारा बाथरूम के अन्दर (ईको-एफेक्ट के लिए) माउथ ऑर्गन पर 'दूरियां नजदीकियां बन गईं' बजाना, उनके मित्र सुधीर चक्रवर्ती का दो प्लास्टिक की बाल्टियां उलट कर 'बोंगो' का विकल्प बनाना-यह दौर आया। सुधीरदा तो फौज के अधिकारी बन कर चले गये। १९७७ में कोलकाता इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीट्यूट के यू-ब्लॉक के साथी और सीनियर चन्द्रशेखर शेवडे को जबरदस्त बोंगों बजाते सुना।
देव आनन्द की स्मृति में एक आशु-प्लेलिस्ट प्रस्तुत है :
बड़ी बहन की लेडीज साइकिल और घर से इजाजत लेकर जिन फिल्मों को अकेले देखा था उनमें प्रमुख थी 'हम दोनों'। फिल्म देखने के बाद के दिनों में एक पुराना ओवरकोट और दो हॉकी-स्टिक लेकर जब एक पांव से चलता था तब बा नाराज हो जाती थी ।
'७४ का आन्दोलन शुरु हुआ तब चर्चा सुनी कि '४२ के दिनों में देव आनन्द 'ऑगस्ट-क्रांति के नायक' जयप्रकाश से मिले थे। आपातकाल में सभी मौलिक अधिकारों के निलम्बित रहने के बाद जब आम चुनाव हुए तब देव आनन्द वरिष्टतम अभिनेता थे जिन्होंने खुलकर कांग्रेस को हराने की अपील की।
फिर बड़े भाई नचिकेता द्वारा बाथरूम के अन्दर (ईको-एफेक्ट के लिए) माउथ ऑर्गन पर 'दूरियां नजदीकियां बन गईं' बजाना, उनके मित्र सुधीर चक्रवर्ती का दो प्लास्टिक की बाल्टियां उलट कर 'बोंगो' का विकल्प बनाना-यह दौर आया। सुधीरदा तो फौज के अधिकारी बन कर चले गये। १९७७ में कोलकाता इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीट्यूट के यू-ब्लॉक के साथी और सीनियर चन्द्रशेखर शेवडे को जबरदस्त बोंगों बजाते सुना।
देव आनन्द की स्मृति में एक आशु-प्लेलिस्ट प्रस्तुत है :
Friday, December 2, 2011
सुमन कल्याणपुर की मेरी प्लेलिस्ट
सुमन कल्याणपुर चर्चा की हकदार हैं। वे उन गायिकाओं में प्रमुख हैं जिनके साथ भारत-रत्न ने राजनीति और तिकड़म की। होश संभालने के बाद मेरे मन पर छाप छोड़ गए तथा उनसे लगायत तरुणाई की दहलीज पर ये गीत मैंने सुने। पसंद किए होंगे इसलिए याद भी रह गये। आपको कैसे लगे ?
Tuesday, November 15, 2011
रस के भरे तोरे नैन , आपकी याद आती रही रात भर
यह दो गीत मैंने काफी पहले पोस्ट किए थे । मित्रूं ने पसन्द भी किए थे । कल उस पोस्ट की लिंक फिर से दी तो पता चला कि इनमें से एक यूट्यूब ने हटा लिया है। सुबह से क्रोम में शॉकवेव का प्लग - इन क्रैश कर गया है । अब प्रयास कर रहा हूं कि उन दो गीतों को नये सिरे से पोस्ट करूं। मित्र इन्द्रनाथ मोदक ने ध्यान दिलाया कि मूल पोस्ट में यूट्यूब इसे हटा चुका है। मित्र का आभारी हूं कि उन्होंने इस पोस्ट की हत्या की खबर दी।
Wednesday, June 29, 2011
चार भाषाओं में क्रांति गीत /समाजवादी जनपरिषद , जलपाईगुड़ी - राष्ट्रीय परिषद
इन गीतों की झलकियां मैं अपने नन्हे से कैमेरा में कैद कर सका । अवसर था समाजवादी जनपरिषद की उत्तर बंग के जलपाईगुड़ी में हुई राष्ट्रीय परिषद । उम्मीद है पसन्द करेंगे और टिप्पणी भी करेंगे ।
सम्बलपुरी समूह गीत
बांग्ला लोक शैली ’बाऊल’ पर आधारित राजनैतिक गीत / राधाकान्त बहिदार
एडवोकेट जेमन का गाया मलयालम गीत
महात्मा फुले रचित अभंग - स्त्री पुरुष सर्व / स्वर संजीव साने
नोट : यू ट्यूब पर लगातार दूसरी बार सुनने पर बिना बाधा सुना जा सकता है। पहली बार में ’बफ़रिंग’ चल रही होती है इसलिए अटक - अटक कर बजता है ।
सम्बलपुरी समूह गीत
बांग्ला लोक शैली ’बाऊल’ पर आधारित राजनैतिक गीत / राधाकान्त बहिदार
एडवोकेट जेमन का गाया मलयालम गीत
महात्मा फुले रचित अभंग - स्त्री पुरुष सर्व / स्वर संजीव साने
नोट : यू ट्यूब पर लगातार दूसरी बार सुनने पर बिना बाधा सुना जा सकता है। पहली बार में ’बफ़रिंग’ चल रही होती है इसलिए अटक - अटक कर बजता है ।
Monday, May 2, 2011
Wednesday, March 23, 2011
लोहिया जन्मशताब्दी पर गीत : इसलिए राह संघर्ष की हम चुनें, गीत : अनूप वशिष्ट
लोहिया जन्मशताब्दी पर अनूप वशिष्ट का गीत : इसलिए राह संघर्ष की हम चुनें । बेस्वर : मेरा
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