फेसबुक-युग में देव आनन्द का न रहना । कुछ मित्रों ने उन्हें उन्हींकी फिल्मों के गीतों को याद कर श्रद्धांजलि दी है। 'तेरी दुनिया में जीने से,बेहतर है कि मर जाएं'से शुरु कर ,'बादल,बिजली,चंदन,पानी जैसा अपना प्यार,लेना होगा जनम हमें कई-कई बार' से होते हुए 'बहुत दूर मुझे चले जाना है' तक।
बड़ी बहन की लेडीज साइकिल और घर से इजाजत लेकर जिन फिल्मों को अकेले देखा था उनमें प्रमुख थी 'हम दोनों'। फिल्म देखने के बाद के दिनों में एक पुराना ओवरकोट और दो हॉकी-स्टिक लेकर जब एक पांव से चलता था तब बा नाराज हो जाती थी ।
'७४ का आन्दोलन शुरु हुआ तब चर्चा सुनी कि '४२ के दिनों में देव आनन्द 'ऑगस्ट-क्रांति के नायक' जयप्रकाश से मिले थे। आपातकाल में सभी मौलिक अधिकारों के निलम्बित रहने के बाद जब आम चुनाव हुए तब देव आनन्द वरिष्टतम अभिनेता थे जिन्होंने खुलकर कांग्रेस को हराने की अपील की।
फिर बड़े भाई नचिकेता द्वारा बाथरूम के अन्दर (ईको-एफेक्ट के लिए) माउथ ऑर्गन पर 'दूरियां नजदीकियां बन गईं' बजाना, उनके मित्र सुधीर चक्रवर्ती का दो प्लास्टिक की बाल्टियां उलट कर 'बोंगो' का विकल्प बनाना-यह दौर आया। सुधीरदा तो फौज के अधिकारी बन कर चले गये। १९७७ में कोलकाता इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीट्यूट के यू-ब्लॉक के साथी और सीनियर चन्द्रशेखर शेवडे को जबरदस्त बोंगों बजाते सुना।
देव आनन्द की स्मृति में एक आशु-प्लेलिस्ट प्रस्तुत है :
क्लासिक! शुक्रिया!
ReplyDeleteकोना कटा हुआ था चिट्ठी का .ऐसी चिट्ठियों का इंतज़ार कोई नही करता फिर भी आती है.
ReplyDeleteइस बार आई एक खूबसूरत शख्स के चले जाने का समाचार ले कर .मेरा भी एक लौटती डाक से जवाब भेज दो बाबु! .कि ............. देव ! तुम हमारे दिल में रहते हो और हमेशा रहोगे .तुम भी एक दिन चले जाओगे यह तो सोचा भी नही था मैंने.बहुत बदसूरत मानती थी मैं खुद को बचपन से.गाइड देखी.भीतर के नूर को बाहर तक कैसे फैलाया जाता है उसी से सीखा और..... अपने प्रेम ,सम्मान की चादर ओढ़ना सीख गई सबको. सामने वाला जीवन भर 'राजू' बनकर रह गया मेरे सामने.
अपने 'ओरा' को बढ़ाना तुमसे सीखा है मैंने राजू!अपने बच्चों को भी सिखाया.स्टाफ को भी फिर.तुम हमसे दूर कैसे जा सकते हो.जो गया वो तो देह मात्र था. देव अपनी फिल्मों में उसी तरह मुस्कराएगा .सबको कहेगा 'प्यार का राग सुनो
अरे ओ आसमां वाले बता इसमें बुरा क्या है?
ReplyDeleteखुशी के चार झोंके इधर से गुज़र जायें...
क्यूं ?
काँपीराइट काँन्टेँट पर एक प्रश्न के उत्तर को वोट करे आपका वोट चाहिए आप किससे सहमत हैँ ।
ReplyDeleteदोस्तो पता नही क्यो कई लोग कहते
हैँ कि वो ये कार्य ज्ञान फैलाने के
लिए कर रहे हैँ बडी मेहनत कर रहे हैँ
अनपढ अनजान लोग की सेवा कर रहे
हैँ उन्हे रास्ता दिखा रहेँ हैँ लेकिन
जब उसके ज्ञान को अपना कहकर दुसरे
भी बाँटने लगते हैँ तो क्यो पहले वालेँ
को बुरा लगता हैँ ये तो मुझे
पता नही क्योँकि दुसरा भी तो वही
कर रहा हैँ जो पहले वाले कर रहेँ थे
यदी उसने अपने नाम से
ही सही ज्ञान बाँटा तो पहले वाले
क्योँ दुःख क्योँ होता हैँ
क्योकि दुसरा तो एक तरह से
देखा जायेँ तो पहले वाले
का ही लक्ष्य पुरा कर रहा हैँ
यदी पहले वाले को दुःख या गम
हो रहा हैँ तो इसका एक ही मतलब हैँ
कि इसके पिछे उसका अपना स्वार्थ
जुडा हुआ हैँ जो कि प्रत्यक्ष
या अप्रत्यक्ष रुप से दिख रहा हैँ
अथवा नहीँ दिख रहा होगा इसपर
निचे मैने एक छोटा गणित के माध्यम
से परिभाषित कर रहा हुँ आप यह
बताऐ कि आप अन्त मेँ निकले किस
परिणाम से सहमत हैँ आपके
सकारात्मक नकारात्मक
सभी विचारोँ का स्वागत हैँ ।
आप किससे सहमत हैँ
काँन्टेँट निर्माण + पोस्टिँग =
ज्ञान का फैलाव
काँन्टेँट काँपी + पोस्टिँग =ज्ञान
का फैलाव
इसलिए यदी आप
काँन्टेँट काँपी +
पोस्टिँग=चोरी या दोहन
अथवा दुःख
मानते हैँ तो अर्थ
सीमित स्थान व्यक्ति+काँन्टेँट
निर्माण=निजी ज्ञान
सीमित स्थान व्यक्ति+काँन्टेँट
निर्माण+काँन्टेँट पोस्टिँग =अन्य
उद्देश्य जैसे पोपुलर होना अपने आप
को बडा साबित करना
अतः परिणाम
काँन्टेँट काँपी + काँन्टेट पोस्टिँग =
ज्ञान का फैलाव =निस्वार्थ कार्य
इसलिए
काँन्टेँट र्निमान+काँन्टेँट पोस्टिँग
+सीमित =स्वार्थ भरे उद्देश्य =
ज्ञान का सिमीत फैलाव = पिँजडे मे
कैद पंछी
अतः
ज्ञान का फैलाव vs ज्ञान
का सीमित फैलाव =ज्ञान का फैलाव
यानि अच्छा हैँ
पिँजडे मेँ बंद पंक्षी vs खुला ज्ञान
फैलाने वाला पंक्षी =उडता पंक्षी
अर्थात
काँन्टेँट निर्माण+काँन्टेँट पोस्टिँग
vs काँन्टेँट काँपी +काँन्टेँट
पोस्टिँग=काँन्टेँट काँपी +काँन्टेँट
पोस्टिँग कही ज्यादा अच्छा और
निस्वार्थ ज्ञान फैलाने हैँ
जो कि ,काँन्टेँट र्निमाण +सिमीत
+पोस्टिँग , से नही समझे
तो दुबारा अवलोकन कर लेँ ।
निचोड ! काँन्टेँट निर्माण
+पोस्टिँग +सिमीत =ज्ञान को एक
पंछी की तरह कैद कर
लोगो को दिखाना ।
काँन्टेँट काँपी + पोस्टिँग =ज्ञान
का निस्वार्थ फैलाव ।
अतः आपका क्या पसंद हैँ
1 ... काँन्टेँट निर्माण + पोस्टिँग+
सिमीत
व्यक्ति या अधिकार=स्वार्थ भरे
उद्देश्य
ज्ञान को पिँजडे मेँ कैद कर
लोगो को दिखाना
या
2 .. काँन्टेँट निर्माण+पोस्टिँग=
ज्ञान का फैलाव , कोइ स्वार्थ नही
वोट करे ..आपका वरुण ।