छात्र युवा संघर्ष वाहिनी , नौजवानों की जिस जमात से आपात-काल के खत्म होते होते जुड़ा उसने 'सांस्कृतिक क्रान्ति' का महत्व समझा । भवानी बाबू ने इस जमात को कहा ' सुरा-बेसुरा ' जैसा भी हो गाओ। सो , सुरे-बेसुरे गीतों का यह चिट्ठा ।
Saturday, January 23, 2010
नामालूम तरीके से नहीं आता है वसंतोत्सव
'वसंतोत्सव’ पर इस पोस्ट के साथ कविता का पाठ लगाना था । वर्डप्रेस में संभव नहीं हुआ । इसलिए यहाँ :
बहुत बढ़िया भाई जी !
ReplyDeleteit's a great post
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