डॉ. शालीन कुमार सिंह अंग्रेजी भाषा के कवि हैं । एक शालीन युवा । भारत में अंग्रेजी में कविता करने वाले एक समूह से जुड़े हैं । उन्हें तबला बजाने का भी शौक है । हाल ही में इनसे तार्रुफ़ हुआ है जो दोस्ती में बदल रहा है । मेरे ब्लॉग पर छपी कुँवरनारायण की एक कविता का उन्होंने अनुवाद किया है ।
इस ब्लॉग पर राशिद खान के गायन की पोस्ट देख कर तपाक से शालीन बोले,’वे भी बदाऊँ के हैं ।’ इस नयी दोस्ती के नाम पर आज की पोस्ट उस्ताद राशिद ख़ान द्वारा राग भटियार में गाया तराना है। कहते हैं , भटियार शब्द का मूल भतृहरि से है। इसके गायन का वक्त पौ फटते ही है ।
उस्ताद राशिद ख़ान के गायन का रस लीजिए :
छात्र युवा संघर्ष वाहिनी , नौजवानों की जिस जमात से आपात-काल के खत्म होते होते जुड़ा उसने 'सांस्कृतिक क्रान्ति' का महत्व समझा । भवानी बाबू ने इस जमात को कहा ' सुरा-बेसुरा ' जैसा भी हो गाओ। सो , सुरे-बेसुरे गीतों का यह चिट्ठा ।
Tuesday, October 20, 2009
Friday, October 16, 2009
शुभ दीपावली : तुम अपना रंज-ओ-ग़म , अपनी परेशानी मुझे दे दो
तुम अपना रंज-ओ-ग़म ,अपनी परेशानी मुझे दे दो ।
तुम्हें ग़म की कसम , इस दिल की वीरानी मुझे दे दो ।
ये माना मैं किसी का़बिल नहीं हूँ इन निग़ाहों में ।
बुरा क्या है अग़र , ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो ।
मैं देखूं तो सही दुनिया तुम्हें कैसे सताती है ।
कोई इनके लिए अपनी निगेबानी मुझे दे दो ।
वो दिल जो मैंने माँगा था मगर गैरों ने पाया था ।
बड़ी इनायत है अग़र उसकी पशेमानी मुझे दे दो ।
- फिल्म - शग़ुन (१९६४) , गीतकार - साहिर लुधियानवी ,गायिका - जगजीत कौर, संगीत- खैय्याम
तुम्हें ग़म की कसम , इस दिल की वीरानी मुझे दे दो ।
ये माना मैं किसी का़बिल नहीं हूँ इन निग़ाहों में ।
बुरा क्या है अग़र , ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो ।
मैं देखूं तो सही दुनिया तुम्हें कैसे सताती है ।
कोई इनके लिए अपनी निगेबानी मुझे दे दो ।
वो दिल जो मैंने माँगा था मगर गैरों ने पाया था ।
बड़ी इनायत है अग़र उसकी पशेमानी मुझे दे दो ।
- फिल्म - शग़ुन (१९६४) , गीतकार - साहिर लुधियानवी ,गायिका - जगजीत कौर, संगीत- खैय्याम
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