Friday, January 2, 2009

'तुम हो गरीब नेवाज'-तुलसीदास : भीमसेन जोशी

'रघुवर तुम तो मेरी लाज ,सदा-सदा मैं सरन तिहारी,तुम हो गरीब नेवाज'। संगीतकार जयदेव ने पंडित भीमसेन जोशी का गाया तुलसीदास का यह भजन १९८५ में बनी फिल्म 'अनकही' में लिया है । 'माँग के खईबो , मसीद में सोईबो' वाले तुलसीदास यहाँ भी छद्म धर्म निरपेक्षता के चक्कर में पड़ गए ? 'रघुवर' को 'गरीब नेवाज' की जगह 'दीनबन्धु' टाइप कुछ न कह सके ?

6 comments:

  1. वाह वाह....
    पंडित जी का ये भजन मुझे बहुत पसंद है...अक्सर गुनगुनाता हूं...

    शुक्रिया...

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  2. भजन तो नहीं सुना है. प्रस्तुत करने का आभार.


    कोई मुस्लिम गीतकार यही लिखता तो सच्चा धर्मनिरपेक्ष हो जाता, जब हिन्दू ने लिखा है तो छद्म ही होगा. प्रश्नवाचक लगाने की जरूरत नहीं थी.

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  3. पंडित जी का गाया हुआ सब कुछ पसंद है। खास तौर पर कबीर का 'सब पैसे के भाई'।

    आप ने खूब चुटकी ली है। तुलसी बाबा की छद्मता पर और संजय जी इसे स्वीकार कर रहे हैं।

    तुलसी तो यह भी कहते हैं ... तुलसी प्रतिमा पूजिबो जिमि गुड़ियन कर खेल .....

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  4. छद्म क्यूँ जी ?
    रघुवर को कई नामोँ से पुकारा है
    बाबा तुलसी ने -
    स्वाँत: सुखाय रघुनाथ गाथा लिखने वाले को भी इतना तो अधिकार है कि
    वह अपने प्राण प्रिय श्री रामचँद्र को जिस मुघलोँ के काल मेँ तुलसी जिये उसके एकाध नाम से भी नवाजेँ ~~
    " दाता गरीब नवाज,
    पार उतारेँ जहाज "
    जहाँ ना पहोँचे रवि
    त्यहाँ पहुँचे कवि "
    और ये तो
    सर्वोत्तम कवि सँत शिरोमणि हैँ --
    उन्हेँ हर तरह की स्वतँत्रता है
    क्यूँकि ,
    तुलसी जैसा विनम्र
    और कोई सँत कवि हुआ ही नहीँ - ना उनसे पहले, ना उनके बाद !
    है ना सच अफलातून भाई ? :)
    - लावण्या

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  5. ये फ़िल्म भी बहुत अच्छी थी और हर गाना उम्दा।

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  6. पापाजी (जयदेवजी)ही ऐसे अनूठे और साहसी प्रयोग कर सकते थे। वे गीतों की धुनें नहीं रचते थे, आत्‍मा को शरीर प्रदान करते थे। वे गिनती के उन संगीतकारों में से एक रह गए थे जो धुनों पर गीत नहीं लिखवाते थे अपितु गीत मिलने पर धुन बनाते थे।
    भारतीय फिल्‍मोद्योग को ही नहीं, भारतीय संगीत को पापाजी का योगदान अद्भुत है। उनका मूल्‍यांकन अब भी शेष है ।
    सुन्‍दर गीत सुनवाने के लिए धन्‍यवाद।

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