दिनेशरायजी की तरह दीवाली के अवसर पर मेरी बिटिया प्योली भी घर आई है । उसने दो तीन गीतों की फरमाईश कर दी जो मेरे जमाने के हैं और उसने बचपन में सुने हैं । बहुत मुश्किल हो गयी खोजने में । लेकिन मेहनत का फल मिला किसी न किसी रूप में । उम्मीद है आप सब इनका पूरा रस लेंगे ।
जिन्दगी को संवारना होगा
आई ऋतु सावन कीचाँद अकेला जाए सखी रीनई री लगन और मीठी बतियां
छात्र युवा संघर्ष वाहिनी , नौजवानों की जिस जमात से आपात-काल के खत्म होते होते जुड़ा उसने 'सांस्कृतिक क्रान्ति' का महत्व समझा । भवानी बाबू ने इस जमात को कहा ' सुरा-बेसुरा ' जैसा भी हो गाओ। सो , सुरे-बेसुरे गीतों का यह चिट्ठा ।
Saturday, August 29, 2020
Wednesday, June 10, 2020
अच्छा गाना सुनो
https://youtu.be/J4OIrZ7PvFs
बांसुरी बजा रहा बच्चा फिल्म में मूक था।गाना पहली बार जब सुना था तब मैं उसकी उम्र का था।मेरे स्कूल में 'दूर गगन की छांव में' जब दिखाई गई थी।
विविध भारती पर यह गाना बज रहा था,अभी उस दिन।मृत्यु से कुछ दिन पहले।हमेशा टिक टॉक पर सुनने वाली शशिकला को टोक कर स्वाति ने कहा,'ये अच्छा गाना सुनो।'
कहीं बैर न हो,कोई गैर न हो,सब मिल के यूं चलते चलें।
बांसुरी बजा रहा बच्चा फिल्म में मूक था।गाना पहली बार जब सुना था तब मैं उसकी उम्र का था।मेरे स्कूल में 'दूर गगन की छांव में' जब दिखाई गई थी।
विविध भारती पर यह गाना बज रहा था,अभी उस दिन।मृत्यु से कुछ दिन पहले।हमेशा टिक टॉक पर सुनने वाली शशिकला को टोक कर स्वाति ने कहा,'ये अच्छा गाना सुनो।'
कहीं बैर न हो,कोई गैर न हो,सब मिल के यूं चलते चलें।
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