छात्र युवा संघर्ष वाहिनी , नौजवानों की जिस जमात से आपात-काल के खत्म होते होते जुड़ा उसने 'सांस्कृतिक क्रान्ति' का महत्व समझा । भवानी बाबू ने इस जमात को कहा ' सुरा-बेसुरा ' जैसा भी हो गाओ। सो , सुरे-बेसुरे गीतों का यह चिट्ठा ।
Tuesday, April 21, 2009
' विरह विथा का को कहूं सजनी '
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अफलातून भाई, सुश्री सुब्बालक्ष्मी जी की गायकी सदा से दीव्य लगती रही है - सुँदर प्रयास के लिये आभार !
ReplyDeletebahut umdaa !
ReplyDeleteआप इतने ज़बरदस्त संगीतप्रेमी हैं, ये पता नहीं था!
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